
16 अगस्त, बुधवार को सावन अधिक मास समाप्त हो जाएगा। इसके पहले शिव पूजा का बहुत ही शुभ योग बन रहा है। चूंकि सावन अधिक मास का संयोग 19 साल बाद बना है, इसलिए ये शिव पूजा का ये संयोग अब लगभग 1 दशक बाद ही बनेगा। (Ravi Pradosh Vrat August 2023) ये शुभ संयोग है प्रदोष व्रत का। इस दिन शिवजी की पूजा विशेष रूप से की जाती है। आगे जानिए कब है सावन अधिक मास का अंतिम प्रदोष व्रत…
धर्म ग्रंथों के अनुसार, प्रत्येक महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। इस बार सावन अधिक के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 13 अगस्त, रविवार की सुबह 08.20 से 14 अगस्त, सोमवार की सुबह 10.25 तक रहेगी। चूंकि प्रदोष व्रत शाम को किया जाता है, इसलिए ये व्रत 13 अगस्त, रविवार को ही किया जाएगा। इस दिन ध्वजा और सिद्धि नाम के 2 शुभ योग रहेंगे।
प्रदोष व्रत में दिन भर उपवास किया जाता है और शाम को भगवान शिव की पूजा करने का विधान है। 13 अगस्त, रविवार को प्रदोष व्रत होने से ये रवि प्रदोष कहलाएगा। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 07:03 से रात 09:12 तक रहेगा। यानी पूजा के लिए कुल अवधि 02 घण्टे 09 मिनट्स तक रहेगी।
13 अगस्त, रविवार को सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर शांत भाव से रहें और किसी तरह का कोई बुरा विचार मन में न लाएं। शाम को ऊपर बताए गए मुहूर्त में भगवान शिव की पूजा शुरू करें। सबसे पहले शुद्ध घी का दीपक जलाएं और हार-फूल चढ़ाएं। इसके बाद बिल्व पत्र, रोली, अबीर, चावल आदि चीजें चढ़ाएं। अंत में भोग लगाएं और अंत में आरती करें। इस तरह पूजा करने से आपकी हर इच्छा पूरी हो सकती है।
जय शिव ओंकारा प्रभु हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभु हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
एकानन चतुरानन पंचांनन राजे स्वामी पंचांनन राजे
हंसानन गरुड़ासन हंसानन गरुड़ासन
वृषवाहन साजे ओम जय शिव ओंकारा
दो भुज चारु चतुर्भूज दश भुज ते सोहें स्वामी दश भुज ते सोहें
तीनों रूप निरखता तीनों रूप निरखता
त्रिभुवन जन मोहें ओम जय शिव ओंकारा
अक्षमाला बनमाला मुंडमालाधारी स्वामी मुंडमालाधारी
त्रिपुरारी धनसाली चंदन मृदमग चंदा
करमालाधारी ओम जय शिव ओंकारा
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगें स्वामी बाघाम्बर अंगें
सनकादिक ब्रह्मादिक ब्रह्मादिक सनकादिक
भूतादिक संगें ओम जय शिव ओंकारा
करम श्रेष्ठ कमड़ंलू चक्र त्रिशूल धरता स्वामी चक्र त्रिशूल धरता
जगकर्ता जगहर्ता जगकर्ता जगहर्ता
जगपालनकर्ता ओम जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका स्वामी जानत अविवेका
प्रणवाक्षर के मध्यत प्रणवाक्षर के मध्य
ये तीनों एका ओम जय शिव ओंकारा
त्रिगुण स्वामीजी की आरती जो कोई नर गावें स्वामी जो कोई जन गावें
कहत शिवानंद स्वामी कहत शिवानंद स्वामी
मनवांछित फल पावें ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभू जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभू हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
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