Putrada Ekadashi 2023: 27 अगस्त को करें पुत्रदा एकादशी व्रत, जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, शुभ योग और पारणा का समय

Putrada Ekadashi 2023 Puja Vidhi: श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है। इसका महत्व कई ग्रंथों में बताया गया है।

 

Manish Meharele | Published : Aug 24, 2023 6:02 AM IST / Updated: Aug 27 2023, 08:58 AM IST

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कब है पुत्रदा एकादशी?

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, श्रावण मास भगवान शिव से संबंधित है। इस महीने में आने वाली एकादशी तिथि का भी विशेष महत्व धर्म ग्रंथों में बताया गया है। श्रावण शुक्ल एकादशी को पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi 2023) कहते हैं। इस बार ये तिथि 27 अगस्त, रविवार को है। इस दिन कई शुभ योग भी बन रहे हैं, जिसके चलते इसका महत्व और भी बढ़ गया है। मान्यता है किस एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है। आगे जानिए इस एकादशी के से जुड़ी खास बातें…

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पुत्रदा एकादशी के शुभ योग (Putrada Ekadashi 2023 Shubh Yog)

पंचांग के अनुसार, श्रावण शुक्ल एकादशी तिथि 26 अगस्त, शनिवार की रात 12:08 से 27 अगस्त, रविवार की रात 09:32 तक रहेगी। चूंकि एकादशी तिथि का सूर्योदय 27 अगस्त को होगा, इसलिए इस दिन ये व्रत किया जाएगा। इस दिन पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र होने से शुभ का योग बनेगा। इसके अलावा प्रीति, आयुष्मान और सवार्थसिद्धि योग भी बनेंगे। सूर्य और बुध के सिंह राशि में होने से बुधादित्य राजयोग भी बनेगा।

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ये हैं पूजा और पारणा के शुभ मुहूर्त (Putrada Ekadashi 2023 Shubh Muhurat)

- सुबह 07:45 से 09:19 तक
- सुबह 09:19 से 10:54 तक
- सुबह 10:54 से दोपहर 12:28 तक
- दोपहर 12:03 से 12:53 तक
- दोपहर 02:02 से 03:37 तक
- पुत्रदा एकादशी व्रत का पारणा 28 अगस्त, सोमवार को किया जाएगा। इसका शुभ मुहूर्त सुबह 05:57 से 08:31 तक रहेगा।

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पुत्रदा एकादशी की पूजा विधि (Putrada Ekadashi 2023 Puja Vidhi)

- 27 अगस्त, बुधवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद हाथ में जल, चावल और फूल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- घर में किसी साफ-सुथरे स्थान पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। सबसे पहले शुद्ध जल से प्रतिमा का अभिषेक करें।
- भगवान को हार पहनाएं और चंदन का तिलक लगाएं। इसके बाद एक-एक करके चावल, फूल, अबीर, गुलाल, इत्र आदि चीजें चढ़ाएं।
- गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाने के बाद भगवान विष्णु को पीले वस्त्र अर्पित करें। गाय के दूध से बनी खीर का भोग लगाएं।
- पूजा के बाद आरती करें। दिन भर शांत मन से भगवान का ध्यान करते रहें। एक समय फलाहार कर सकते हैं।
- रात को सोएं नहीं, भगवान की मूर्ति के पास बैठकर भजन-कीर्तन करें। अगले दिन शुभ मुहूर्त में पारणा करें।
- पारणा करने के बाद ही स्वयं भोजन करें। इस तरह व्रत और पूजा करने से योग्य संतान की कामना पूरी होती है।

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भगवान विष्णु की आरती

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥

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ये है पुत्रदा एकादशी की कथा (Putrada Ekadashi Katha)

धर्म ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन समय में सुकेतुमान नाम के एक राजा थे। वे बहुत ही न्यायप्रिय थे और अपनी प्रजा का ध्यान रखते थे, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। एक बार वे इस बात से इतना विचलित हो गए जंगल में चले गए। वहां उन्हें एक ऋषि मिले। राजा ने उन्हें अपनी समस्या बताई। वे ऋषि बहुत बड़े तपस्वी थे। उन्होंने राजा को श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने को कहा। राजा ने ये व्रत पूरी भक्ति और निष्ठा से किया, जिसके फलस्वरूप उनके यहां योग्य पुत्र का जन्म हुआ।


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