
उज्जैन. इन दिनों सावन का अधिक मास चल रहा है। इस महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 30 जुलाई, रविवार को है। इस दिन प्रदोष व्रत (Sawan Pradosh 2023) किया जाएगा। रविवार को प्रदोष तिथि होने से ये रवि प्रदोष कहलाएगा। ये व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। सावन अधिकमास में रवि प्रदोष व्रत करने का विशेष महत्व रहेगा। इस दिन कई शुभ योग भी रहेंगे। आगे जानिए इस दिन कौन-कौन से शुभ योग बनेंगे, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त आदि…
ये शुभ योग बनेंगे रवि प्रदोष पर (Sawan Pradosh 2023 Shubh Yog)
पंचांग के अनुसार, सावन अधिक मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 30 जुलाई, रविवार की सुबह 10:34 से 31 जुलाई, सोमवार की सुबह 07:26 तक रहेगी। चूंकि प्रदोष व्रत की पूजा शाम को की जाती है, इसलिए ये व्रत 30 जुलाई, रविवार को ही किया जाएगा। इस दिन सवार्थसिद्धि योग बन रहा है। इस योग में की गई पूजा अवश्य सिद्ध होती है।
ये है शुभ मुहूर्त ((Sawan Pradosh 2023 Shubh Muhurat)
प्रदोष व्रत में शाम को पूजा करने का विधान है। शाम को प्रदोष काल (एक विशेष समय) में ही इस दिन पूजा की जाती है। 30 जुलाई, रविवार की शाम रवि प्रदोष व्रत की पूजा की जाएगी। पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 07:14 से से 09:19 तक रहेगा यानी लगभग 02 घण्टे 06 मिनट्स तक।
ये है रवि प्रदोष पूजा-व्रत विधि (Sawan Pradosh 2023 Puja Vidhi)
-30 जुलाई, रविवार की सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि करें। इसके बाद हाथ में चावल, पानी और फूल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- इस व्रत में वैसे तो पानी भी नहीं पिया जाता, लेकिन अगर ऐसा संभव न हो तो पानी पी भी सकते हैं और फलाहार भी कर सकते हैं।
- दिन भर सात्विक तरीके से रहें, किसी से विवाद न करें। मन में कोई बुरा विचार न लाएं। मन ही मन ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करें।
- शाम को ऊपर बताए गए मुहूर्त में भगवान शिव की पूजा करें। सबसे पहले शिवजी के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं और हार-फूल चढ़ाएं।
- इसके बाद बिल्व पत्र, रोली, अबीर, चावल आदि चीजें चढ़ाएं। अपनी इच्छा अनुसार भगवान को भोग लगाएं और अंत में आरती करें।
- इस तरह जो व्यक्ति विधि-विधान पूर्वक भगवान शिव की पूजा करता है, उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और हर कामना पूरी होती है।
भगवान शिव की आरती (Lord shiva Aarti)
जय शिव ओंकारा प्रभु हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभु हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
एकानन चतुरानन पंचांनन राजे स्वामी पंचांनन राजे
हंसानन गरुड़ासन हंसानन गरुड़ासन
वृषवाहन साजे ओम जय शिव ओंकारा
दो भुज चारु चतुर्भूज दश भुज ते सोहें स्वामी दश भुज ते सोहें
तीनों रूप निरखता तीनों रूप निरखता
त्रिभुवन जन मोहें ओम जय शिव ओंकारा
अक्षमाला बनमाला मुंडमालाधारी स्वामी मुंडमालाधारी
त्रिपुरारी धनसाली चंदन मृदमग चंदा
करमालाधारी ओम जय शिव ओंकारा
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगें स्वामी बाघाम्बर अंगें
सनकादिक ब्रह्मादिक ब्रह्मादिक सनकादिक
भूतादिक संगें ओम जय शिव ओंकारा
करम श्रेष्ठ कमड़ंलू चक्र त्रिशूल धरता स्वामी चक्र त्रिशूल धरता
जगकर्ता जगहर्ता जगकर्ता जगहर्ता
जगपालनकर्ता ओम जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका स्वामी जानत अविवेका
प्रणवाक्षर के मध्यत प्रणवाक्षर के मध्य
ये तीनों एका ओम जय शिव ओंकारा
त्रिगुण स्वामीजी की आरती जो कोई नर गावें स्वामी जो कोई जन गावें
कहत शिवानंद स्वामी कहत शिवानंद स्वामी
मनवांछित फल पावें ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभू जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभू हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।