Som Pradosh April 2023: विक्रम संवत 2080 का पहला सोम प्रदोष 3 अप्रैल को, जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, योग व खास बातें

Published : Apr 03, 2023, 08:36 AM IST
som pradosh 2023

सार

Som Pradosh: इस बार 3 अप्रैल, सोमवार को सोम प्रदोष का योग बन रहा है। खास बात ये है कि ये विक्रम संवत 2080 का पहला सोम प्रदोष है। इस दिन कई शुभ योग बन रहे हैं, जिसके चलते इसका महत्व और भी बढ़ गया है। 

उज्जैन. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को शिवजी को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत (Som Pradosh April 2023) किया जाता है। इस बार 3 अप्रैल, सोमवार को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि है। इसलिए इस दिन सोम प्रदोष किया जाएगा। खास बात ये है कि ये विक्रम संवत 2080 का पहला सोम प्रदोष व्रत है। आगे जानिए इस व्रत की पूजा विधि, शुभ योग, शुभ मुहूर्त आदि जानकारी…

जानें शुभ योग व मुहूर्त (Som Pradosh Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 3 अप्रैल, सोमवार की सुबह 06:24 से 04 अप्रैल की सुबह 08:05 तक रहेगी। इस दिन पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र होने से ध्वज नाम का शुभ योग दिन भर रहेगा। पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 06:40 से रात 08:58 तक रहेगा।

इस विधि से करें सोम प्रदोष व्रत-पूजा (Som Pradosh Puja Vidhi)
- सोम प्रदोष की सुबह यानी 3 अप्रैल, सोमवार को स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर सात्विक रूप से रहते हुए बिताएं।
- शाम को शुभ मुहूर्त में पूजा आरंभ करें। पहले शिवलिंग का शुद्ध जल से अभिषेक करें, फिर पंचामृत से और अंत में पुन: शुद्ध जल से अभिषेक करें।
- इसके बाद फूल चढ़ाएं और शुद्ध घी का दीपक जलाएं। अन्य पूजन सामग्री बिल्व पत्र, धतूरा, आंकड़ा, आदि चढ़ाएं। ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते रहें।
- अंत में सत्तू का भोग लगाएं और 8 दीपक अलग-अलग दिशाओं में लगाकर आरती करें। इस व्रत से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

शिवजी की आरती (Shivji Ki Aarti)
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥



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