
Tarapith West Bengal Birbhum: इस बार दिवाली 12 नवंबर, रविवार को मनाई जाएगी। आमतौर पर इस दिन लोग अपने-अपने घरों में देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, लेकिन इसी रात पश्चिम बंगाल के वीरभूम में स्थित तारापीठ श्मशान में तांत्रिकों का जमघट लगता है। दूर-दूर से तांत्रिक यहां तंत्र साधना के लिए आते हैं। इस मौके पर तारापीठ मंदिर में भी विशेष पूजा की जाती है। आगे जानिए दिवाली की रात को ये पूजा क्यों की जाती है?
क्यों खास है तारापीठ?
पश्चिम बंगाल के वीरभूम में स्थित माता तारा का ये मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। इसका वर्णन अनेक धर्म ग्रंथों में भी मिलता है। कभी ये स्थान सुनसान था और यहां दूर-दूर तक सिर्फ श्मशान था। तभी से ये स्थान तांत्रिकों के लिए सबसे पसंदीदा जगह है। दिवाली की तारापीठ में खास पूजा की जाती है, जिसमें शेर का नाखून, गिद्ध की हड्डी, मछली और हाथी के दांत आदि का उपयोग किया जाता है।
इसे कहते हैं जादूनगरी
तंत्र शास्त्र के अनुसार, कामाख्या को मायानगरी कहते हैं और तारापीठ को जादूनगरी। कहते हैं कि जो भी शक्तियां आप कामाख्या शक्तिपीठ से अर्जित करते हैं उन्हें दिवाली की रात तारापीठ में सिद्ध करना पड़ता है। तभी उसका फल प्राप्त होता है। मान्यता है कि माता जिस पर भी प्रसन्न होती हैं, उसे इसी श्मशान में दर्शन देती हैं। इसलिए इस श्मशान की रात को भी बहुत पवित्र माना जाता है। लोग इसे अपने घर लेकर पूजा करते हैं।
दिवाली की रात है बहुत खास
तंत्र शास्त्र में तंत्र सिद्धि के लिए 4 रातों को बहुत ही खास माना गया है। इनमें से दिवाली की रात भी एक है। तंत्र भाषा में इसे कालरात्रि कहा जाता है। मान्यता है कि दिवाली की रात किए गए तंत्र प्रयोगों में जल्दी ही सफलता मिलती है। इसी कारण दिवाली की रात श्मशान आदि स्थानों पर तांत्रिकों का जमघट लगता है।
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