कहीं निकालते रावण की शवयात्रा, कहीं मारते गोली, जानें दशहरे की रोचक परंपराएं

Dussehra 2024: हर साल नवरात्रि समाप्त होने के अगले दिन दशहरा पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 12 अक्टूबर, शनिवार को मनाया जाएगा। दशहरे पर रावण दहन की परंपरा है, लेकिन कुछ स्थानों पर इससे अलग परंरपाएं भी निभाई जाती हैं।

 

Dussehra Tradition: दशहरा हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। ये त्योहार हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 12 अक्टूबर, शनिवार को मनाया जाएगा। इस दिन पूरे देश में रावण के पुतलों का दहन किया जाता है जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। देश के कुछ हिस्सों में दशहरे पर कुछ अलग परंपराएं भी निभाई जाती हैं, जो काफी रोचक हैं। आगे जानिए इन परंपराओं के बारे में…

यहां मारते हैं रावण को गोली
वैसे तो देश भर में दशहरे पर रावण के पुतलों का दहन किया जाता है लेकिन राजस्थान के उयदपुरवटी में दादू दयाल समाज के लोग दशहरा पर कुछ अलग तरीके से मनाते हैं। इस समाज के लोग दशहरे पर पहले रावण को गोली मारते हैं और इसके बाद उसके पुतले का दाहन करते हैं। ये परंपरा लगभग 125 साल पुरानी बताई जाती है।

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यहां होती है रावण की आरती-पूजा
राजस्थान में एक गांव ऐसा भी है जहां रावण का वध नहीं किया जाता है बल्कि दशहरे के मौके पर उसकी आरती व पूजा की जाती है। ये है संगोला गांव। यहां ये परंपरा कैसे शुरू हुई, इसके बारे में कोई नहीं जानता। यहां काले पत्थर से बनी रावण की एक प्राचीन प्रतिमा है। दशहरे पर सभी लोग यहं इकट्ठा होकर रावण की पूजा करते हैं।

यहां रावण नहीं महिषासुर का होता है वध
दशहरे के मौके पर जहां पूरे देश में रावण के पुतलों का दहन किया जाता है, वहीं राजस्थान के पुष्कर के बिजयनगर में महिषासुर के पुतले का दहन किया जाता है। ये परंपरा यहां स्थित शक्तिपीठ बाड़ी माता मंदिर में होता है। मान्यता के अनुसार दशहरे पर ही देवी मां ने देवताओं के दिव्यास्त्रों से महिषासुर का वध किया था।

यहां निकालते हैं रावण का शवयात्रा
राजस्थान के भीलवाड़ा में दशहरे के मौके पर रावण का पुतलों का दहन नहीं करते बल्कि उसके पुतले की शवयात्रा निकालते हैं। ये शवयात्रा शहर के मुख्य मार्गों से निकाली जाती है और श्मशान जाकर खत्म होती है। ये परंपरा 50 साल पुरानी बताई जाती है।

यहां मनाते हैं रावण की मृत्यु का शोक
राजस्थान के जोधपुर जिले में मंडोर गांव में रावण की मृत्यु का जश्न नहीं बल्कि शोक मनाया जाता है। यहां के लोगों को मानना है कि रावण की पत्नी मंदोदरी इसी गांव की थी। इसलिए यहां के लोग रावण को अपना जमाई मानते हैं और उसकी मृत्यु का शोक मनाते हैं।


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इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

 

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