Facts of Sengol: सेंगोल के ऊपर नंदी की ही प्रतिमा क्यों, क्या आप जानते हैं ये खास वजह?

What Is Sengol: 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। इस मौके पर संसद भवन में सेंगोल स्थापित किया जाएगा। सामान्य भाषा में सेंगोल (Sengol) को राजदंड कहते हैं। 

 

Manish Meharele | Published : May 25, 2023 5:50 AM IST / Updated: May 25 2023, 02:16 PM IST

उज्जैन. भारत के इतिहास में 28 मई 2023 का दिन बहुत ही खास होगा, क्योंकि इस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) नए संसद भवन (New Parliament House inaugurated Date) का उद्घाटन करेंगे। (What Is Sengol) जब ये इस बात की घोषणा हुई है तभी से एक शब्द जो लगातार चर्चा में बना हुआ है, वो है सेंगोल। (Facts of Sengol) सामान्य भाषा में सेंगोल का अर्थ है राजदंड। संसद भवन (New Parliament Building) के उद्घाटन के मौके पर स्पीकर की सीट के पास सेंगोल स्थापित किया जाएगा। आगे जानिए क्या है सेंगोल और इसके ऊपर नंदी की ही प्रतिमा क्यों बनावाई गई?

क्या है सेंगोल? (Kya Hai Sengol)
सेंगोल को सामान्य भाषा में राजदंड कहा जा सकता है। ये छड़ी जैसा दिखता है जो नीचे से पतला और ऊपर की ओर मोटा होता है। इस पर सुंदर नक्काशी होती है और सबसे ऊपर की ओर नंदी की प्रतिमा होती है। इसकी लंबाई लगभग 5 फीट होती है। इस पर तिरंगा भी बना होता है। संगोंल को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक भी माना जाता है। जब अंग्रेज भारत से गए तो उन्होंने अपनी सत्ता सौंपने के प्रतीक के रूप में जवाहरलाल नेहरू को सेंगोल सौंपा था।

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सेंगोल के ऊपर नंदी की ही प्रतिमा क्यों? (Sengol par Nandi Ki pratima Kyo?)
सेंगोल के ऊपर नंदी की प्रतिमा होने के पीछे एक नहीं कई कारण हैं। सबसे पहले सेंगोल यानी राजदंड के माध्यम से सत्ता हस्तांतरण की परंपरा चोलवंश के राजाओं द्वारा शुरू की गई। जब भी कोई चोल राजा होने वाले नए राजा का राज्याभिषेक करता था तो सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक रूप में ये राजदंड देता था। चोल राजा भगवान शिव के भक्त थे और नंदी भगवान शिव का वाहन है। शिवजी के प्रतीक रूप में ही चोल राजाओं ने राजदंड के ऊपर नंदी की प्रतिमा बनवाई होगी, ऐसी मान्यता है।

किसका प्रतीक है नंदी? (Kiska Prateek Hai Nandi)
धर्म ग्रंथों के अनुसार, नंदी भगवान शिव के अवतार भी हैं और वाहन भी। पुराणों में नंदी को शक्ति-संपन्नता और कर्मठता का प्रतीक माना जाता है। शक्ति संपन्न यानी जिस व्यक्ति के पास न्याय करने की शक्ति होती है। जब भी किसी व्यक्ति को राजदंड सौंपा जाता है तो उससे यही उम्मीद की जाती है कि वह न्याय पूर्वक धर्म का शासन स्थापित करेगा। वहीं कर्मठता का अर्थ है लगातार लोगों के हित के लिए काम करना। जिसे भी राजदंड सौंपा जाता है, उससे यही आशा की जाती है।



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