Janmashtami 2024: जब भी हम भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति देखते हैं तो गौर से देखने पर प्रतिमा की छाती पर एक पैर का निशान दिखाई देता है। इस निशान के बिना श्रीकृष्ण की मूर्ति पूर्ण नहीं मानी जाती। जानें क्या है इसका रहस्य।
Interesting facts related to Shri Krishna: भगवान श्रीकृष्ण की अनेक प्रकार की प्रतिमाएं बाजार में मिलती हैं। इन सभी प्रतिमाओं में श्रीकृष्ण की छाती पर पैर का निशान जरूर बनाया जाता है। मान्यता है कि इस निशान के बिना श्रीकृष्ण की प्रतिमा अधूरी मानी जाती है। ये निशान क्यों बनाया जाता है, इससे जुड़ी एक प्राचीन कथा है। जन्माष्टमी (26 अगस्त, सोमवार) के मौके पर जानें इस कथा के बारे में…
इसलिए बनाते हैं श्रीकृष्ण की छाती पर पैर का निशान
- धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक बार ऋषि-मुनियों में इस बात पर बहस हो गई कि त्रिदेवों ( ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में कौन श्रेष्ठ है? लेकिन काफी समय तक भी इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकला।
- तब महर्षि भृगु को यह काम सौंपा गया। महर्षि भृगु ब्रह्माजी के पास गए। वहां उन्होंने ब्रह्मदेव को न तो प्रणाम किया। ये देख ब्रह्माजी क्रोधित हो गए, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने क्रोध को दबा लिया।
- इसके बाद महर्षि भृगु कैलाश पर्वत पर शिवजी के पास गए। उन्हें देखकर महादेव प्रसन्न हुए और गले लगाने के लिए उठे। लेकिन भृगु मुनि ने उनसे गले मिलने से इंकार कर दिया।
- महर्षि भृगु ने महादेव से कहा कि ‘आप धर्म की मर्यादा का उल्लंघन करते हैं। पापियों को वरदान देते हैं, जिससे देवताओं पर संकट आता है। इसलिए मैं आपका आलिंगन नहीं करूँगा।
- महर्षि भृगु की बात सुनकर महादेव को क्रोध आ गया और उन्होंने अपना त्रिशूल उठा लिया लेकिन देवी पार्वती के कहने पर उन्होंने अपने क्रोध को शांत कर लिया। महर्षि भृगु वहां से भी लौट गए।
- ब्रह्मा और शिवजी से मिलने के बाद भृगु मुनि भगवन विष्णु से मिलने वैकुण्ठ गए। वहां भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी की गोद में सिर रखकर लेटे थे। भृगु ने जाते ही उनकी छाती पर लात मारी।
- विष्णुजी उठे और महर्षि भृगु को प्रणाम कर कहा ‘हे महर्षि, मेरा वक्ष अत्यंत कठोर है, आपको चोट तो नहीं लगी। आपके चरणों में तीर्थों का वास है, जिससे स्पर्श से आज मैं धन्य हो गया।’
- भगवान विष्णु का ऐसा व्यवहार देखकर महर्षि भृगु ने उन्हें ही त्रिदेवों में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया। श्रीकृष्ण की प्रतिमाओं पर जो पैर का निशान बनाया जाता है वो महर्षि भृगु का ही है।
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