Hal Shashthi 2024: भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम थे, जो शेषनाग के अवतार थे। हर साल भाद्रपद मास में बलराम जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान बलराम की विशेष पूजा आरती की जाती है।
Kab Hai Balram Jyanti 2024: धर्म ग्रंथों के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को बलराम जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 25 अगस्त, रविवार को मनाया जाएगा। मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। बलराम स्वयं शेषनाग के अवतार थे। भगवान बलराम से जुड़ी ऐसी कईं बातें हैं जिसके बारे में कम लोग जानते हैं। बलराम जयंती के मौके पर जानिए कुछ रोचक बातें…
कैसे बने शेषनाग श्रीकृष्ण के बड़े भाई?
श्रीमद्भागवत के अनुसार, ‘भगवान विष्णु जब श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लेने वाले थे, उस समय शेषनाग उनके पास पहुंचे और कहा कि ‘हे प्रभु, जब आपने श्रीराम रूप में अवतार लिया था, उस समय मैं आपका छोटा भाई लक्ष्मण था। अब आप कृष्ण अवतार लेने जा रहे हैं तो इस रूप में मैं आपका बड़ा भाई बनना चाहता हूं।’ भगवान विष्णु ने शेषनाग की ये प्रार्थना स्वीकार कर ली और इस तरह उन्होंने श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में अवतार लिया।
एक मां के गर्भ से दूसरी मां के गर्भ में कैसे पहुंचें बलराम?
श्रीमद्भागवत के अनुसार, वसुदेव की 2 रानियां थीं, पहली देवकी जो उनके साथ कंस के कारागार में बंदी थी और दूसरी रोहिणी जो गोकुल में नंदलालजी के यहां छिपकर रही थी। शेषनाग देवकी के सातवें गर्भ के रूप में अवतरित हुए। जब देवकी के गर्भ का आठवां मास चल रहा था उस समय देवी महामाया ने देवकी का गर्भ से शेषनाग की ज्योति रोहिणी के गर्भ में डाल दी। नौवें महीने में रोहिणी ने एक बलशाली पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम बलराम रखा गया।
बलराम ने क्यों मारा श्रीकृष्ण के साले को?
श्रीमद्भागवत के अनुसार, श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मिणी के भाई का नाम रुक्मी था। रुक्मी मन ही मन श्रीकृष्ण से दुश्मनी रखता था, लेकिन इसके बाद भी उसने अपनी पोती रोचना का विवाह श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से करवा दिया। विवाह समारोह के दौरान रुक्मी और बलराम जब चौसर खेल रहे थे, तब किसी बात पर रुक्मी बलरामजी का मजाक उड़ाने लगा। क्रोधित होकर बलरामजी ने उसका वध कर दिया।
जब बलराम ने उखाड़ा हस्तिनापुर
श्रीमद्भागवत के अनुसार, जब दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा का स्वयंवर हो रहा था, तभी श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने उसका हरण कर लिया। जब साम्ब लक्ष्मणा को लेकर द्वारिका जा रहा था, तभी रास्ते में कौरवों ने उसे बंदी बना लिया। जब ये बात बलराम की पता चली तो वे कौरवों को समझाने हस्तिनापुर आए। यहां कौरवों ने जब उनकी बात नहीं मानी तो गुस्से में आकर बलराम ने अपने हल से हस्तिनापुर को उखाड़ दिया और गंगा नदी की ओर खींचने लगे। हस्तिनापुर का ये हाल देख कौरवों ने बलराम से माफी मांग ली और साम्ब व लक्ष्मणा को छोड़ दिया।
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