Masan Holi 2024: काशी जलती चिताओं के बीच कब खेली जाएगी ‘मसान होली’, क्यों खास है ये परंपरा? जानें हर बात

Masan Holi 2024 Kab Hai: होली हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। देश के अलग-अलग हिस्सों में इससे जुड़ी कईं मान्यताएं हैं। काशी की मसान होली भी इन परंपराओं में से एक है। दुनिया भर के लोग इस अनोखी होली को देखने यहां आते हैं।

 

Manish Meharele | Published : Mar 21, 2024 3:43 AM IST / Updated: Mar 21 2024, 09:26 AM IST

Kya Hai Masan Holi: देश के अलग-अलग हिस्सों में होली से जुड़ी कईं मान्यताएं और परंपराएं प्रचलित हैं। आमतौर पर होली रंग-गुलाल से खेली जाती है, लेकिन उत्तर प्रदेश में एक जगह ऐसी भी हैं जहां श्मशान में चिता की राख से होली खेलने की परंपरा है। ये जगह है काशी। श्मशान को मसान भी कहते हैं इसलिए इस परंपरा को मसान होली के नाम से जाना जाता है। आगे जानिए मसान होली से जुड़ी खास बातें…

क्यों खेलते हैं काशी में मसान होली? (Kaha Khelte Hai Masan Holi)
काशी को भगवान शिव का घर कहा जाता है। मान्यता है कि देवी पार्वती से विवाह करने के बाद शिवजी उन्हें काशी लेकर आए। उस दिन रंगभरी एकादशी थी। शिवजी के विवाह की खुशी में अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर शिवजी के गणों व भूत-प्रेतों ने श्मशान में चिता की राख से होली उत्सव मनाया। इस उत्सव में शिवजी भी शामिल हुए। तभी से यहां हर साल मसान होली खेली जाती है। लोगों का मानना है कि आज भी भगवान शिव मसान में गुप्त रूप से आते हैं। इस बार मसान होली 21 मार्च, गुरुवार को खेली जाएगी।

चिता भस्म से ही क्यों खेलते हैं होली?
काशी के मणिकर्णिका घाट चिता भस्म से होली खेलने की परंपरा के पीछे एक गहरा आध्यात्मिक रहस्य छिपा है। धर्म ग्रंथों के अनुसार ये संसार नश्वर है यानी एक दिन नष्ट होने वाला है। ये दुनिया एक दिन भस्म यानी राख में बदल जाएगी। यहां रहने वाले हर प्राणी का भी यही हाल होगा। चिता भस्म से होली खेलने का अर्थ ये है है कि इस दुनिया और अपने जीवन से अधिक मोह न रखें क्योंकि ये सबकुछ एक दिन राख में बदल जाएगा।

क्यों खास है मणिकर्णिका घाट? (Why is Manikarnika Ghat special?)
काशी क मणिकर्णिका घाट बहुत ही प्राचीन है। अनेक धर्म ग्रंथों में भी इसका वर्णन मिलता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, एक बार देवी पार्वती का कर्ण फूल (कान में पहनने का आभूषण) यहां एक कुंड में गिर गया था। जिसे बाद में भगवान शिव ने ढूंढ लिया। देवी पार्वती के कान का आभूषण गिरने के कारण ही इस घाट का नाम मणिकर्णिका पड़ गया। एक बात और जो इस घाट को विशेष बनाती है वो ये कि महादेव ने इसी स्थान पर देवी सती का अग्नि संस्कार किया था, इसलिए इसे महाश्मसान भी कहते हैं।


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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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