Narak chaturdashi 2023: हर साल दिवाली से एक दिन पहले नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को लेकर कईं मान्यताएं और कथाएं हैं जो इसे और भी खास बनाती हैं। बहुत कम लोग इन कथाओं के बारे में जानते हैं।
Narak chaturdashi Ki Katha: दिवाली उत्सव के दूसरे दिन यानी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इसे रूप चतुर्दशी, काली चौदस आदि नामों से भी जाना जाता है। इस बार ये पर्व 11 नवंबर, शनिवार को है। इस पर्व से भगवान श्रीकृष्ण और नरकासुर राक्षस की कथा जुड़ी है। बहुत कम लोगों को पता है कि नरकासुर कौन था। आगे जानिए नरकासुर की कथा…
कौन था नरकासुर? (Koun Tha Narakasur)
धर्म ग्रंथों के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर पृथ्वी को पानी से बाहर निकाला तो पृथ्वी से एक संतान उत्पन्न हुई। यही नरकासुर कहलाया। पृथ्वी इसकी माता और भगवान विष्णु इसके पिता थे। नरकासुर महाभयंकर और पराक्रमी था। इसने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न कर कईं तरह के वरदान प्राप्त कर लिए, जिससे यह देवताओं को परेशान करने लगा। नरकासुर ने ये वरदान भी मांगा कि मेरी मृत्यु सिर्फ मेरी माता के हाथों ही हो। ब्रह्मा ने उसे ये वरदान भी दे दिया।
सत्यभामा के हाथों कैसे मारा गया नरकासुर?
नरकासुर ने प्राग्ज्योतिषपुर को अपनी राजधानी बनाकर यहां अपना राज्य स्थापित किया। नरकासुर ने 16 हजार से अधिक महिलाओं को कैद कर लिया। उसकी क्रूरता के आगे कोई देवता नहीं टिकता था। द्वापरयुग में जब भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया तब एक दिन वे अपने पत्नी सत्यभामा को लेकर उससे युद्ध करने गए। इस युद्ध में श्रीकृष्ण कुछ देर के लिए अचेत हो गए। इसी दौरान सत्यभामा ने नरकासुर का वध कर दिया। दरअसल सत्यभामा साक्षात पृथ्वी का ही अवतार थीं और नरकासुर को मां के ही हाथों मारे जाने का वरदान था, सो वह मारा गया।
क्या हुआ 16 हजार स्त्रियों का?
नरकासुर की मौत के बाद श्रीकृष्ण ने उन सभी 16 हजार स्त्रियों को कैद से मुक्त कर दिया। तब उन स्त्रियों ने श्रीकृष्ण से कहा कि ’अब हमें कोई भी स्वीकार नहीं करेगा।, ऐसी स्थिति में हम क्या करें?’ उनकी बात सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा कि‘मैं आप सब को अपनाऊंगा, जीवन भर आपका पोषण भी करूंगा।’ इस तरह श्रीकृष्ण ने उन सभी से विवाह कर उन्हें नया जीवन प्रदान किया।
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