Vat Savitri Purnima Vart 2024: धर्म ग्रंथों के अनुसार, ज्येष्ठ मास के अंतिम दिन यानी पूर्णिमा तिथि पर वट सावित्री व्रत किया जाता है। ये व्रत 3 दिनों तक किया जाएगा। जानें इस व्रत से जुड़ी खास बातें।
Vat Savitri Purnima Vart 2024: वट सावित्री व्रत उत्तर भारत में ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाता है, वहीं दक्षिण भारत में ये व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि पर करने का विधान है। इसलिए इसे वट सावित्री पूर्णिमा व्रत भी कहा जाता है। ये व्रत 3 दिनों तक किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से पति की उम्र लंबी होती है और संतान सुख भी मिलता है। इस व्रत की कथा महाभारत आदि कई ग्रंथों में मिलती है। आगे जानिए कब से शुरू होगा वट सावित्री पूर्णिमा व्रत, पूजा विधि, शुभ योग और मुहूर्त के बारे में…
कब से शुरू होगा वट पूर्णिमा व्रत 2024? (Vat Savitri Purnima Vart 2024 Date)
धर्म ग्रंथों के अनुसार, वट पूर्णिमा व्रत 3 दिनों तक किया जाएगा। मुख्य पूजा ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा पर की जाती है। इस बार ये व्रत 19 जून, बुधवार से शुरू होगा। 2 दिनों तक व्रत के नियमों का पालन किया जाएगा और अंतिम दिन यानी 21 जून, शुक्रवार को पूर्णिमा तिथि पर मुख्य पूजा की जाएगी। इस दिन चर, शुभ, शुक्ल और सुस्थिर नाम के 4 शुभ योग दिन भर रहेंगे, जिससे इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है।
वट सावित्री पूर्णिमा व्रत 2024 (Vat Savitri Purnima Vart 2024 Shubh Muhurat)
- सुबह 07:26 से 09:07 तक
- सुबह 09:07 से 10:48 तक
- दोपहर 12:28 से 02:09 तक
इस आसान विधि से करें व्रत-पूजा (Vat Savitri Purnima Vart 2024 Puja Vidhi)
- 21 जून, शुक्रवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद हाथ में जल-चावल और फूल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- एक बड़ी टोकरी में सात तरह के अनाज, उसके ऊपर भगवान ब्रह्मा और देवी सावित्री की प्रतिमा रख वट वृक्ष के पास जाकर इनकी पूजा करें।
- इनके साथ ही शिव-पार्वती, यमराज और सावित्री-सत्यवान की पूजा भी करें। नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए देवी सावित्री को अर्घ्य दें-
अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्ध्यं नमोस्तुते।।
- इसके बाद ये मंत्र बोलकर वट वृक्ष पर जल चढ़ाएं-
वट सिंचामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमै:।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोसि त्वं महीतले।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैस्च सम्पन्नं कुरु मां सदा।।
- इस तरह पूजा करने के बाद कच्चा सूत लपेटकर वट वृक्ष की 11 या 21 परिक्रमा करें। वट वृक्ष के नीचे शु्दध घी का दीपक भी लगाएं।
- पूजा के बाद अपनी सास व परिवार की अन्य बुजुर्ग महिलाओं का आशीर्वाद लेना न भूलें। साथ ही सावित्री-सत्यवान की कथा भी अवश्य सुनें।
ये है सावित्री और सत्यवान की कथा…(Savitri-Satyvan ki Katha)
- पुराणों के अनुसार, किसी समय भद्र देश पर राजा अश्वपति का शासन था। उनकी एक ही पुत्री थी, जिसका नाम सावित्री था। सावित्री का विवाह राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से हुआ था।
- दुश्मनों द्वारा राज्य छिन लेने के कारण सत्यवान अपने माता-पिता के साथ वन में रहता था। सत्यवान की आयु कम है, ये बात सावित्री को पता थी। मृत्यु तिथि के दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ जंगल में गई।
- यहां जब यमराज सत्यवान के प्राण उसके शरीर से निकालकर ले जाने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चलने लगी। यमराज ने सावित्री को कई वरदान दिए और सत्यवान के प्राण भी छोड़ने पड़े।
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