Mahashivratri 2023: किस तिथि पर और कहां हुआ था शिव-पार्वती का विवाह, जानें क्या लिखा है शिवमहापुराण में?

Mahashivratri 2023: फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 18 फरवरी, शनिवार को है। इस पर्व पर भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से की जाती है। कई परंपराएं इस त्योहार से जुड़ी हैं।

 

Manish Meharele | Published : Feb 14, 2023 9:48 AM IST / Updated: Feb 14 2023, 03:22 PM IST

उज्जैन. इस बार महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2023) का पर्व 18 फरवरी, शनिवार को मनाया जाएगा। महाशिवरात्रि का पर्व क्यों मनाया जाता है, इसे लेकर कई पौराणिक कथाएं और मान्यताएं हैं। इनमें से एक मान्यता ये भी है कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव का विवाह हुआ था। हालांकि इस मान्यता को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद है। शिव विवाह कब हुआ था, इस संबंध में शिव महापुराण में विस्तार पूर्वक बताया गया है। आगे जानिए शिव विवाह से जुड़ी खास बातें…

कब हुआ था शिव-पार्वती का विवाह?
कई स्थानों पर ये बात प्रचलित हैं कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिव-पार्वती का विवाह हुआ था, इसलिए इस तिथि पर हर साल महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस संबंध में माँ पिताम्बरा ज्योतिष केंद्र उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. नलिन शर्मा ने बताया कि महादेव द्वारा शिव पुराण की "रूद्र संहिता" में स्पष्ट उल्लेख है कि भगवान शिव-पार्वती का विवाह मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को हुआ था। ग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव- पार्वती का विवाह उत्तराखंड के केदारनाथ के पास स्थित त्रियुगीनारायण में संपन्न हुआ था। यहां आज भी इस बात के प्रमाण मिलते हैं।

Latest Videos

इसलिए मनाते हैं महाशिवरात्रि
पं. शर्मा के अनुसार, शिवपुराण की ईशान संहिता में उल्लेख है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को भगवान शिव करोड़ों सूर्य के समान प्रभाव वाले ज्योतिलिङ्ग रूप में प्रकट हुए थे। इसी ज्योतिर्लिंग स्वरूप की पूजा के उद्देश्य से हर साल महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। महाशिवरात्रि की रात में शिव पूजा करने से हर तरह के सुख प्राप्त होते हैं और मनोकामना पूरी हो सकती है।

महाशिवरात्रि का महत्व
शिवपुराण की ईशान संहिता के अनुसार, शिवजी के निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। सृष्टि के प्रथम कल्प के पहले दिन ब्रह्माजी और विष्णुजी ने ज्योतिर्मय स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए शिव जी की रातभर पूजा की थी। यह ज्योतिर्लिंग फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को प्रकट हुआ था। भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के आग्रह पर ज्योतिर्मय स्तम्भ द्वादश ज्योतिर्लिंग में विभक्त हो गया था। तभी से आज तक शिवलिंग पूजा निरंतर चली आ रही है। महाशिवरात्रि की रात शिवलिंग का स्पर्श करने से ही पुण्य फल प्राप्त होता है।


ये भी पढ़ें-

Shivji Ke Bhajan: ये हैं भगवान शिव के 10 सुपरहिट भजन, महाशिवरात्रि पर इन्हें गाकर करें महादेव को प्रसन्न


Mahashivratri 2023: इन मुस्लिम देशों में भी हैं शिवजी के प्राचीन मंदिर, कोई 1 हजार साल पुराना तो कोई महाभारत काल का


Mahashivratri 2023: बीमारियों से हैं परेशान तो महाशिवरात्रि पर करें ये आसान उपाय, दूर होंगे ग्रहों के दोष भी


Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें। आर्टिकल पर भरोसा करके अगर आप कुछ उपाय या अन्य कोई कार्य करना चाहते हैं तो इसके लिए आप स्वतः जिम्मेदार होंगे। हम इसके लिए उत्तरदायी नहीं होंगे।

 

Share this article
click me!

Latest Videos

नवरात्र में भूलकर भी न करें ये 5 काम, जानें किन-किन चीजों का रखना चाहिए ध्यान । Navratri 2024
सावित्री जिंदल से भी अमीर है एक बंदा, जानें हरियाणा चुनाव में कौन है 10 सबसे अमीर प्रत्याशी?
हिजबुल्लाह चीफ की मौत के बाद 7 दिन में ही पैदा हो गए 100 'नसरल्लाह' । Nasrallah
इजरायल को खत्म कर देंगे...हाथ में बंदूक थाम खामेनेई ने किया वादा
हिजबुल्लाह-ईरान के सीने पर मौत का वार कर रहा इजराइल, क्या है इस देश का सुपर पावर