New Parliament Inauguration: 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए संसद भवन के उद्घाटन करेंगे। इस कार्यक्रम को लेकर काफी बवाल मचा हुआ है। नए संसद भवन की डिजाइन मध्य प्रदेश के विदिशा में स्थित विजय मंदिर से काफी मिलती-जुलती है।
उज्जैन. हमारे देश में अनेक प्राचीन मंदिर हैं, इन्हीं में से एक है मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के विदिशा (Vidisha) में स्थित विजय मंदिर (Vijay Mandir)। इस समय ये मंदिर इसलिए चर्चाओं में है नए संसद भवन की डिजाइन इससे काफी हद तक मेल खाती है। उल्लेखनीय है कि 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) नए संसद भवन (New Parliament Building) की उद्घाटन करेंगे। नए संसद भवन के उद्घाटन की तारीख तय होने के बाद ही विदिशा का विजय मंदिर चर्चा का विषय बन गया है। आगे जानिए क्या है इस मंदिर का इतिहास…
ये है विजय मंदिर का इतिहास (History of Vidisha Vijay Mandir)
विजय मंदिर मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में स्थित एक किले के अंदर बना हुआ है। इस मंदिर का जिक्र 1024 में महमूद गजनी के साथ आए विद्वान अलबरूनी ने अपनी किताबों में किया है। उसके अनुसार, ये मंदिर उस समय के सबसे बड़े मंदिरों में से एक था। कहा जाता है कि इस मंदिर में हमेशा भक्तों का जमावड़ा लगा रहता था। यहां दिन-रात पूजा का क्रम चलता रहता था।
किसने करवाया था इस मंदिर का निर्माण? (Who built Vidisha Vijay Mandir)
इतिहासकारों के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण चालुक्य वंशी राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री वाचस्पति ने अपनी विदिशा विजय के बाद करवाया था। इस मंदिर के मुख्य देवता भगवान सूर्य हैं, जिसके चलते इस मंदिर का नाम भेल्लिस्वामिन (सूर्य) रखा गया। भेल्लिस्वामिन से ही इस स्थान का नाम पहले भेलसानी और बाद में भेलसा पड़ा।
इतना विशाल था ये मंदिर (Detail of Vidisha Vijay Mandir)
इतिहासकारों की मानें तो ये मंदिर मुगल काल के सबसे विशाल मंदिरों में से एक था। इसके वैभव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये मंदिर लगभग आधा मील लंबा-चौड़ा था। इसकी ऊँचाई लगभग 105 गज थी, जिससे चलते मंदिर का शिखर काफी दूर ही दिखता था। अपनी विशालता और प्रसिद्धि के कारण विजय मंदिर हमेशा से मुस्लिम शासकों के आँखों का कांटा बना रहा।
कब-कब हुआ इस मंदिर पर आक्रमण? (who broke vidisha vijay temple)
इतिहासकारों की मानें तो विजय मंदिर पर पहला आक्रमण सन् 1233-34 में मुस्लिम आक्रांता इल्तुतमिश ने किया था। तब सन् 1250 में इसका पुनर्निमाण किया गया। कुछ सालों बाद 1290 ई. अलाउद्दीन खिलजी के मंत्री मलिक काफूर ने इस पर दोबारा आक्रमण कर इसे नष्ट कर दिया। सन् 1460 ई. में महमूद खिलजी और सन 1532 में गुजरात के शासक बहादुरशाह ने मंदिर को और नुकसान पहुंचाया।
औरंगजेब ने चलवाई थी तोपें (Who fired cannon at Vidisha Vijay Mandir)
मंदिर का पूरी तरह से विनाश होने के बाद भी लोगों के मन में इस मंदिर के प्रति गहरी आस्था थी। मुगल शासक औरंगजेब ने सन् 1682 में इस मंदिर को तोपों से उड़वा दिया। आज मंदिर के कुछ हिस्सों में तोप के गोलों के निशान देखे जा सकते हैं। औरंगजेब की मौत के बाद हिंदुओं ने पुन: इस जगह पूजा-पाठ करनी शुरू कर दी। सन् 1760 में पेशवा ने इस मंदिर के वैभव को लौटाने का प्रयास किया।
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