Rangpanchami 2023: कब है रंगपंचमी, क्यों मनाते हैं ये पर्व? इस त्योहार से जुड़ी ये 5 परंपराएं हैं सबसे अलग

Rangpanchami 2023: होली के 3 दिन बाद रंगपंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व में भी लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और गले मिलकर बधाइयां देते हैं। इस मौके पर कई खास परंपराएं भी निभाई जाती हैं, जो बिल्कुल अलग और खास हैं।

 

Manish Meharele | Published : Mar 10, 2023 3:01 AM IST / Updated: Mar 10 2023, 09:59 AM IST

उज्जैन. हिंदू धर्म के अनेक अनेक त्योहार मनाए जाते हैं, उन्हीं में से एक रंगपंचमी (Rangpanchami 2023)। ये त्योहार खासतौर पर मालवा क्षेत्र (इंदौर, उज्जैन, देवास) में और इसके आस-पास के कुछ इलाकों में खासतौर पर मनाया जाता है। होली चैत्र कृष्ण प्रतिपदा और रंगपंचमी चैत्र कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि पर मनाई जाती है। इस बार ये तिथि 12 मार्च, रविवार को है। (Traditions of Rangpanchami 2023) इस त्योहार से जुड़ी अनेक परंपराएं से और भी खास बनाती हैं। आगे जानिए इन परंपराओं के बारे में…

पहले जानें, क्यों मनाते हैं ये पर्व? (Why celebrate Rangpanchami)
रंगपंचमी का पर्व क्यों मनाया जाता है, इसके पीछे कई मान्यताएं हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब हिरण्यकश्यिपु ने अपनी बहन होलिका के साथ अपने पुत्र प्रह्लाद को जलाया तो 5 दिनों तक वे दोनों उस अग्निवेदी पर बैठे रहे। पांचवें दिन होलिका का अंत हो गया और भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु की कृपा से जीवित बाहर निकल आए। ये देख लोगों में उत्साह छा गया और सभी ने रंग-गुलाल लगाकर एक-दूसरे को बधाइयां दी। तभी ये रंगपंचमी का पर्व मनाया जा रहा है।

इस दिन लगाते हैं पक्का रंग
होली पर लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं जबकि रंगपंचमी पर पक्का रंग लगाने की परंपरा है। इस दिन गुलाल का उपयोग कम किया जाता है और पक्के रंगों का अधिक। इसलिए इसे रंगपंचमी कहा जाता है। इस दिन पक्के रंगों का उपयोग क्यों किया जाता है इसके पीछे कोई खास कारण तो नहीं है, लेकिन मान्यता है कि इस दिन श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ होली खेली थी।

यहां होता है मेले का आयोजन
मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले के करीला गांव में रंगपंचमी के मौके पर मेले का आयोजन किया जाता है। ये मेला रामजानकी मंदिर में लगता है। इसे करीला मेले (karela Mela) के नाम से जाना जाता है। यहां स्थित मंदिर में माता जानकी के साथ उनके पुत्र लव-कुश और उनके गुरु महर्षि वाल्मीकि की प्रतिआएं स्थापित हैं। मान्यता है कि माता जानकी ने यहीं लव-कुश को जन्म दिया था।

इंदौर में निकाली जाती है गैर
रंगपंचमी पर इंदौर में निकाली जाने गैरी विश्व प्रसि्दध है। इस गैर में 2 से 3 लाख लोग शामिल होते हैं और रंग-गुलाल उड़ाते हुए शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचते हैं। इस आयोजन में स्थानीय प्रशासन भी सहयोग करता है। इतने सारे लोगों का एक साथ एक कार्यक्रम में शामिल होना वाकई हैरान कर देने वाला होता है। इस गैर को इंदौर की पहचान भी कहा जाता है। स्थानीय प्रशासन इस परंपरा को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल करवाने की तैयारी कर रहा है।

उज्जैन में निकलती है भगवान महाकाल की गैर
मध्य प्रदेश के उज्जैन में रंगपंचमी के मौके पर भगवान महाकाल की गैर निकालने की परंपरा है। इस गैर में भगवान महाकाल का वैभव झलकता है। ये परंपरा भी कई सालों से चली आ रही है। इस दौरान भक्ति गीतों पर लोग नाचते-गाते हुए चलते हैं। कई लोग देवी-देवताओं और भूत-प्रेत का रूप धरकर चलते हैं। इस मौके पर भगवान महाकाल को टेसू के फूलों से बना रंग लगाया जाता है।

इस दिन करते हैं राधा-कृष्ण की पूजा
रंगपंचमी के मौके पर भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधा रानी की पूजा की परंपरा भी है। इस परंपरा के पीछे कई मान्यताएं छिपी हैं। कहते हैं कि रंगपंचमी पर भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधा रानी की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में खुशहाली बनी रहती है और मनचाही जीवनसाथी भी मिलता है। अगर किसी के वैवाहिक जीवन में परेशानी हो तो उसे इस दिन राधा-कृष्ण की पूजा जरूर करनी चाहिए।


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