Rangpanchami 2023: इस मंदिर में होती है देवी सीता की पूजा, नहीं है श्रीराम की प्रतिमा, रंगपंचमी पर लगता है मेला

Rangpanchami 2023: रंगपंचमी पर अशोकनगर के करीला गांव में एक प्राचीन मंदिर के प्रांगण में धार्मिक मेले का आयोजन होता है, जिसे करीला मेला कहते हैं। ये देवी सीता का प्राचीन मंदिर है, जहां लव-कुश और महर्षि वाल्मीकि की पूजा भी की जाती है।

 

Manish Meharele | Published : Mar 11, 2023 4:07 AM IST

उज्जैन. भारत को मेलों का देश भी कहा जाता है। यहां हर उत्सव पर कहीं न कहीं मेले का आयोजन किया जाता है। ऐसा ही एक मेला रंगपंचमी (Rangpanchami 2023) के मौके पर मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के अशोकनगर (Ashok Nagar) के करीला गांव (Karila Village) में आयोजित किया जाता है। इसे करीला मेले (Karila Mela) के नाम से जाना जाता है। ये मेला जिस मंदिर प्रांगण में लगता है, वो भी बहुत प्राचीन है और उससे कई मान्यताएं व परंपराएं भी जुड़ी हैं। दूर-दूर से लोग इस मेले को देखने के लिए यहां आते हैं। रंगपंचमी (12 मार्च, रविवार) के मौके पर जानिए क्यों खास है ये मेला और मंदिर…

इस मंदिर में देवी सीता के साथ नहीं है श्रीराम की प्रतिमा
हमारे देश में भगवान श्रीराम और माता जानकी के अनेक मंदिर हैं। आमतौर पर श्रीराम-सीता की पूजा साथ में ही की जाती है, लेकिन अशोकनगर के करीला गांव में स्थित इस मंदिर में माता जानकी के साथ श्रीराम की प्रतिमा नहीं है। यहां लोग सिर्फ माता जानकी की ही पूजा करने आते हैं। साथ ही यहां साथ ही यहां लव-कुश और महर्षि वाल्मीकि की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। संभवतया ये देश का एक ही ऐसा मंदिर हैं, जहां श्रीराम के बिना देवी सीता की पूजा की परंपरा है।

3 दिन तक चलता है ये मेला
हर साल अशोकनगर के करीला गांव में ये रंगपंचमी के मौके पर करीला मेला 3 दिनों तक चलता है। इस दौरान यहां लाखों लोग आते हैं। जिन लोगों की कोई संतान नहीं है वे विशेष तौर पर इस मेले में आते हैं और देवी जानकी के दर्शन कर संतान के लिए प्रार्थना करते हैं। इसके पीछे भी एक मान्यता जुड़ी है, वो ये है कि इसी स्थान पर देवी सीता ने अपने पुत्रों लव-कुश को जन्म दिया था।

मन्नत पूरी होने पर पूरी करने पड़ती है ये परंपरा
करीला मेले के दौरान यहां राई (लोकनृत्य) नृत्य करवाने की परंपरा है। मान्यता है कि माता जानकी ने यहीं लव-कुश को जन्म दिया था। उनके जन्मोत्सव के समय स्वर्ग से अप्सराओं ने आकर नृत्य किया था। तभी से यह प्रथा आज तक निभाई जा रही है। जिन लोगों की मन्नत पूरी हो जाती है और उनके यहां संतान हो जाती है, वे यहां आकर राई नृत्य करवाते हैं या फिर जो महिलाएं नृत्य करती हैं उन्हें न्यौछावर देनी पड़ती है।



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