Vikram Samvat: 12 नहीं 13 महीनों का होगा हिंदू वर्ष 2083, जानें वजह

Published : Nov 14, 2025, 10:19 AM IST
Vikram Samvat

सार

Vikram Samvat: हिंदू कैलेंडर का आने वाला साल यानी विक्रम संवत 2083 थोड़ा अलग होगा क्योंकि इस साल में 12 नहीं बल्कि 13 महीने होंगे। ऐसा क्यों होगा इसके पीछे की वजह भी बहुत खास है।

Adhik Maas 2026: अंग्रेजी की ही तरह हिंदी कैलेंडर भी होता है जिसे विक्रम संवत कहते हैं। वर्तमान में विक्रम संवत 2082 चल रहा है जो 18 मार्च 2026 तक रहेगा। इसके बाद विक्रम संवत 2083 शुरू होगा। खास बात ये है कि ये हिंदू वर्ष 12 नहीं बल्कि 13 महीनों का रहेगा। सुनने में ये बात थोड़ी अजीब लगे लेकिन ये सच है। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है ज्योतिषी गणनाओं के अनुसार हिंदू कैलेंडर का हर तीसरा साल 13 महीनों का ही होता है। आगे जानिए ऐसा क्यों होता है और 2026 में 13वें महीने का नाम क्या होगा?

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13वां महीना होगा अधिक मास

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी के अनुसार विक्रम संवत 2083 में ज्येष्ठ का अधिक मास होने से ये साल 12 नहीं बल्कि 13 महीनों का रहेगा। अधिक मास यानी इस साल ज्येष्ठ का महीना 30 नहीं बल्कि 60 दिनों का होगा। ज्येष्ठ का अधिक मास 17 मई से 15 जून 2026 तक रहेगा। अधिक मास को पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। धर्म ग्रंथों में इसका विशेष महत्व बताया गया है। इस महीने में मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि पर रोक रहती है।
 

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क्यों आता है अधिक मास?

वैदिक ज्योतिष के अनुसार हिंदू धर्म में दो तरह के कैलेंडर प्रचलित हैं सौर और चंद्र। सौर कैलेंडर सूर्य की गति पर आधारित है और चंद्र कैलेंडर चंद्रमा की। चंद्र वर्ष 355 दिन का होता है और सौर वर्ष 365 दिन का। इस तरह हर साल चंद्र और सौर वर्ष में 10 दिन का अंतर आ जाता है। तीन साल में ये अंतर 30 दिनों का हो जाता है। इस अंतर को खत्म करने ने के लिए ही हमारे विद्वानों ने अधिक मास की व्यवस्था की ताकि सभी व्रत-त्योहार निश्चित ऋतुओं में किए जा सकें।

क्यों जरूरी है अधिक मास?

हिंदू धर्म में लगभग सभी व्रत त्योहार चंद्रमा की तिथियों को ध्यान में रखकर किए जाते हैं। चंद्रमा लगभग 29 दिनों में पृथ्वी का एक चक्कर लगाता है, जिसे एक चंद्र मास कहते हैं। जब चंद्रमा पृथ्वी के 12 चक्कर लगा लेता है तो इसे एक चंद्र वर्ष कहते हैं जो लगभग 355 दिन का होता है। वहीं सौर वर्ष 365 का होता है। अगर अधिक मास की व्यवस्था न हो तो हिंदू व्रत-त्योहार हर साल 10 दिन पीछे खिसकते चले जाएंगे, जिससे दिवाली बारिश में और होली शीत ऋतु में मनाई जाने लगेगी। ऐसी स्थिति से बचने के लिए ही हमारे विद्वानों में अधिक मास की व्यवस्था की है।


Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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