Choti Diwali 2022: नरक चतुर्दशी 23 अक्टूबर को, जानें दिन भर के मुहूर्त, पूजा विधि, शुभ योग, महत्व व कथा

Narak Chaturdashi 2022: दीपोत्सव के दूसरे यानी नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इसे रूप चतुर्दशी, यम चौदस और काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन यमराज की पूजा करने का विधान है। ऐसा करने से कई परेशानियां दूर हो सकती हैं।
 

Manish Meharele | Published : Oct 22, 2022 9:15 AM IST

उज्जैन. दीपावली पर्व सिर्फ एक नहीं बल्कि 5 दिन की उत्सवों की श्रृंखला है। इसकी शुरूआत धनतेरस से होती है और दूसरे दिन नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi 2022) का पर्व मनाया जाता है। इस बार नरक चतुर्दशी का पर्व 23 अक्टूबर, रविवार को है। इसे नरक चौदस, रूप चतुर्दशी, यम चौदस, काली चौदस आदि नाम से भी जाना जाता है। इस दिन अकाल मृत्यु से मुक्ति की कामना की जाती है। आगे जानिए इस पर्व की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व अन्य खास बातें…

ये हैं नरक चतुर्दशी के शुभ योग (Narak Chaturdashi 2022 Shubh Yog)
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि 23 अक्टूबर, रविवार की शाम 06:03 से 24 अक्टूबर, सोमवार की शाम 05:27 तक रहेगी। इस दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र होने से मित्र और हस्त नक्षत्र होने से मानस नाम के 2 शुभ योग बन रहे हैं। इसके अलावा इस दिन सर्वार्थसिद्धि, इंद्र और वैधृति योग भी रहेंगे।

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ये हैं नरक चतुर्दशी के शुभ मुहूर्त (Narak Chaturdashi 2022 Shubh Muhurat)
23 अक्टूबर, रविवार को शाम 6 बजे तक त्रयोदशी तिथि रहेगी। ये तिथि खरीदी के लिए बहुत ही शुभ मानी जाती है और इसके बाद चतुर्दशी तिथि शुरू हो जाएगी। इस तिथि मे यमराज के निमित्त दीपदान करना चाहिए। आगे जानिए 23 अक्टूबर के दिन भर के खरीदी और शाम के दीपदान के मुहूर्त…

खरीदी के मुहूर्त
सुबह 07:51 से 09:16 तक
सुबह 09:16 से 10:41 तक
सुबह 10:41 से दोपहर 12:05 तक
दोपहर 01:30 से 02:54 तक

दीपदान का मुहूर्त
शाम 05.18 से रात 08.06 तक

इस विधि से करें पूजा (Narak Chaturdashi 2022 Puja Vidhi)
- नरक चतुर्दशी की सुबह शरीर पर तेल मालिश कर स्नान करने की परंपरा है। इसे अभ्यंग स्नान कहते हैं। स्नान के दौरान अपामार्ग (एक प्रकार का पौधा) को शरीर से स्पर्श करें और ये मंत्र बोलें-
सितालोष्ठसमायुक्तं सकण्टकदलान्वितम्। 
हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:।।
- नहाने के बाद दक्षिण दिशा की ओर देखकर ये मंत्र बोलें और प्रत्येक नाम बोलते हुए तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि दें। यह यम-तर्पण कहलाता है। इससे साल भर के पाप नष्ट हो जाते हैं- 
ऊं यमाय नम:, ऊं धर्मराजाय नम:, ऊं मृत्यवे नम:, ऊं अन्तकाय नम:, ऊं वैवस्वताय नम:, ऊं कालाय नम:, ऊं सर्वभूतक्षयाय नम:, ऊं औदुम्बराय नम:, ऊं दध्राय नम:, ऊं नीलाय नम:, ऊं परमेष्ठिने नम:, ऊं वृकोदराय नम:, ऊं चित्राय नम:, ऊं चित्रगुप्ताय नम:। शाम को यमराज के निमित्त दीपदान करें।

क्यों करते हैं यमराज की पूजा (Narak Chaturdashi Katha)
जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार में बलि से तीन पग धरती मांगकर उसका सर्वस्व छिन लिया तो बलि ने उनसे प्रार्थना की- 'हे प्रभु! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरा संपूर्ण राज्य और ऐश्वर्य मुझसे ले लिया। इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी पर यमराज के लिए दीपदान करे, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए। भगवान वामन ने बलि की ये प्रार्थना स्वीकार कर ली। 

अभ्यंग स्नान की परंपरा क्यों?
नरक चतुर्दशी की सुबह तेल मालिश करके औषधियुक्त जल से स्नान किया जाता है। इसे ही अभ्यंग स्नान करते हैं। मान्यता है कि नरकासुर नाम के राक्षस का वध करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने भी इसी प्रकार स्नान किया था। तभी से ये परंपरा चली आ रही है। अभ्यंग स्नान के बाद भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की पूजा भी जरूर करनी चाहिए।

एक कथा ये भी है (Narak Chaturdashi Katha) 
प्राचीन समय में रंतिदेव नाम के एक दयालु राजा थे। एक दिन अचानक यमदूत उन्हें नरक जाने के लिए आ गए। राजा रंतिदेव ने उनसे पूछा कि “मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया तो फिर मैं नरक क्यों जाऊं?”
यमदूत ने कहा कि “एक बार आपके महल से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था, यह उसी पाप कर्म का फल है।” राजा ने यमदूतों से एक वर्ष का समय मांगा। इसके बाद राजा रंतिदेव ऋषियों के बास गए और उन्हें पूरी बात बताई।
ऋषियों ने उन्हें कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी। ऋषियों के कहने पर राजा ने वैसा ही किया और पाप मुक्त हुए। इसके पश्चात उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ।

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