
History Of No Ball In Cricket: किसी भी गेंदबाज के लिए नो बॉल देना क्रिकेट में सबसे खराब माना जाता है। वहीं, बल्लेबाजों को नो बॉल मिलना किसी वरदान से कम नहीं होता है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि ये नो बॉल होती क्या है, कितने तरीके की होती है और क्रिकेट के इतिहास में नो बॉल देना कब से शुरू किया गया था? आइए आज हम इन्हीं सारे सवालों का जवाब ढूंढने की कोशिश करते हैं और जानते हैं कि क्रिकेट में नो बॉल नियम कब से शुरू हुआ।
क्रिकेट में नो बॉल का चलन 1810 के आसपास शुरू हुआ। उस समय गेंदबाज ओवर आर्म बॉलिंग नहीं कर सकते थे, यानी केवल अंडर आर्म या राउंड आम तरीके से ही गेंद फेंकी जा सकती थी। अगर कोई गेंदबाज नियम से ज्यादा ऊंचाई या गलत तरीके से गेंद डालता तो उसे नो बॉल माना जाता था। नो बॉल देने का मकसद बल्लेबाज की सुरक्षा और फेयर गेम खेलना था, क्योंकि क्रिकेट में कई बार गेंदबाज डिफरेंट एंगल से गेंद फेंकते थे या क्रीज के आगे निकल जाते थे, जिससे बल्लेबाज को नुकसान होता था। इसी वजह से मैरीलेबोन क्रिकेट क्लब (MCC) ने नो बॉल रूल लागू किया।
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आमतौर पर नो बॉल पांच तरह की होती है-
फ्रंट फुट नो बॉल: जब गेंदबाज का आगे वाला पैर क्रीज से आगे निकल जाता है, तो इसे फ्रंट फुट नो बॉल कहा जाता है।
बीमर नो बॉल: बिना उछाले गेंद बल्लेबाज के कमर के ऊपर चली जाए तो इसे बीमर नो बॉल कहा जाता है।
हाई बाउंसर नो बॉल: हाई बाउंसर नो बॉल तब दी जाती है, जब बाउंसर जो बल्लेबाज के सिर के ऊपर निकल जाए।
फील्डिंग नो बॉल: जब फील्डिंग पोजिशन नियमों के खिलाफ हो, तो फील्डिंग नो बॉल दिया जाता है।
फेयर डिलीवरी आर्म एक्शन नो बॉल: गेंदबाज का एक्शन गलत होने पर या थ्रो गलत होने पर फेयर डिलीवरी आर्म एक्शन नो बॉल भी दिया जाता है।
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आजकल हर इंटरनेशनल मैच में नो बॉल चेक करने के लिए थर्ड अंपायर लाइव नो बॉल ट्रैकिंग सिस्टम से मॉनिटर करते हैं। गेंदबाज के नो बॉल देने पर बल्लेबाज को फ्री हिट मिलता है, जिससे रन बनाना आसान हो जाता है। अगर वो इस बॉल पर कैच आउट भी होता है, तो उसे आउट नहीं दिया जाता है, केवल रन आउट होने पर ही उसे आउट मिलता है।