Bihar Election: 1967 के बाद क्यों टूटा कांग्रेस का सासाराम कनेक्शन? जानिए 17 चुनावों में किसका रहा बोलबाला

Published : Sep 01, 2025, 12:08 PM IST
bihar election 2025

सार

Sasaram Vidhan Sabha: बिहार चुनाव 2025 से पहले जानिए क्यों 1967 के बाद सासाराम में कांग्रेस का कनेक्शन टूट गया। 17 विधानसभा चुनावों में किस दल और नेता का दबदबा रहा, इसका पूरा राजनीतिक इतिहास पढ़िए।

Bihar Election 2025: सासाराम में कभी कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व था। यह वह दौर था जब देशभर में कांग्रेस का दबदबा था, और सासाराम भी इससे अछूता नहीं रहा। बाबू जगजीवन राम जैसे दिग्गज नेता इसी इलाके से निकले, जिनका नाम देश की राजनीति में बड़े सम्मान से लिया जाता है। लेकिन 1967 के बाद तस्वीर बदल गई। कांग्रेस के हाथ से जीत छिटक गई और नए-नए चेहरे, नए समीकरण सामने आने लगे।

1967 के बाद सासाराम की राजनीति जातियों के इर्द-गिर्द घूमने लगी। कौन-सी पार्टी जीतती है, यह अब नेताजी के नाम या कांग्रेस के सिंबल से तय नहीं होता था। कुशवाहा, वैश्य, ब्राह्मण हो या राजपूत, हर किसी ने अपनी अपनी सियासी ताकत दिखानी शुरू कर दी। जनता नेता की काबिलियत से ज्यादा उसकी जाति को देखकर वोट करने लगी।

सासाराम विधानसभा सीट और बदलते चेहरे

अब बात करें चुनावी मैदान कि तो 1967 के बाद यहां 17 बार चुनाव हुए। जिसमें से कांग्रेस सिर्फ दो बार ही जीत पाई जबकि भाजपा ने पांच बार बाजी मारी है। वहीं दस बार जीत क्षेत्रीय दलों के नाम हुई। 1980 के बाद, रामसेवक सिंह ने कुशवाहा समाज की ताकत दिखाई। उसके बाद जवाहर प्रसाद भाजपा के मजबूत चेहरे बने। वहीं डॉ. अशोक कुमार, जिन्होंने पहले राजद और फिर जदयू से चुनाव लड़ा, एक लंबे समय तक क्षेत्र की सियासत के केंद्र में रहे।

साल विजेताप्रतिद्वंद्वी
1980रामसेवक सिंहमनोरमा पांडेय
1985मनोरमा पांडेयजगदीश ओझा
1990जवाहर प्रसादविपिन बिहारी सिन्हा
1995जवाहर प्रसादडॉ अशोक कुमार
2000डॉ अशोक कुमारजवाहर प्रसाद
2005 (फरवरी) जवाहर प्रसादडॉ अशोक कुमार
2005 (अक्टूबर)जवाहर प्रसादडॉ अशोक कुमार
2010जवाहर प्रसादडॉ अशोक कुमार
2015डॉ अशोक कुमारजवाहर प्रसाद
2020राजेश कुमार गुप्ताडॉ अशोक कुमार

क्षेत्रीय दलों से भाजपा की टक्कर

भाजपा ने पहली बार सासाराम सीट पर 1990 में जीत दर्ज की थी। उसके बाद से जवाहर प्रसाद और डॉ. अशोक कुमार के बीच सीधी टक्कर कई बार देखी गई। भाजपा, राजद और जदयू की दावेदारी लगातार बढ़ती रही। कांग्रेस की जगह जातीय समीकरण और नए दलों ने ले ली।

अभी की बात करें तो गठबंधन की वजह से सासाराम में शांति है, लेकिन भीतर ही भीतर टिकट की रेस, जातीय जोड़-तोड़ और समीकरणों का खेल जारी है। 2020 में भाजपा-जदयू गठबंधन को हार मिली, जिससे राजद का दबदबा फिर से दिखा। वहीं कांग्रेस अब सियासी गहमागहमी में पीछे रह गई है, ना तो यहां उनके पास बड़ा चेहरा है ना जाति का मजबूत आधार।

सासाराम में जातियों के आधार पर वोट पड़ते हैं, सिंबल या बड़े नेताओं के नाम पर नहीं। चुनावी नतीजे हमेशा बदलते रहते हैं, और नए-नए चेहरे हर बार कहानी का रुख मोड़ देते हैं। यही वजह है कि कांग्रेस का 'सासाराम कनेक्शन' टूट गया और 1967 के बाद उसके हाथ में कभी जीत नहीं आई।

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