
पटनाः बिहार की सियासत में एक और बड़ा उलटफेर हो गया है। झारखंड की सत्तारूढ़ पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने महागठबंधन से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। पार्टी ने कहा है कि वह बिहार की छह विधानसभा सीट धमदाहा, चकाई, कटोरिया, मनिहारी, जमुई और पीरपैंती पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। लेकिन सवाल यह है कि, आखिर क्यों JMM को ये कदम उठाना पड़ा? क्या यह सिर्फ सीटों का विवाद है, या इसके पीछे कोई गहरी नाराज़गी छिपी है?
JMM के नेताओं का आरोप है कि महागठबंधन में उन्हें बराबरी का सम्मान नहीं मिला। पार्टी महासचिव और प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने साफ कहा कि उन्होंने कई बार RJD और कांग्रेस से संपर्क किया था। JMM ने उन इलाकों की जानकारी दी थी, जहां उनका मजबूत जनाधार है और कार्यकर्ता सालों से जेडीयू-बीजेपी के खिलाफ लड़ रहे हैं। लेकिन उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया गया।
भट्टाचार्य ने कहा, “हमने महागठबंधन के हर घटक से बात की, खासकर राजद से। झारखंड में हमने उन्हें समर्थन दिया था, लेकिन अब बिहार में हमें नज़रअंदाज़ किया गया। यह साझेदारी नहीं, एकतरफा राजनीति बन गई थी।” यानी JMM का गुस्सा सिर्फ सीटों के बंटवारे पर नहीं, बल्कि उस उपेक्षा की राजनीति पर है जो गठबंधन के अंदर धीरे-धीरे पनप रही थी।
JMM के वरिष्ठ नेता मनोज पांडे ने साफ कहा कि पार्टी किसी की रहम पर राजनीति नहीं करती। उन्होंने कहा, “हम शिबू सोरेन की पार्टी हैं, हमने हमेशा आदिवासियों और वंचितों के अधिकार के लिए संघर्ष किया है। जब आपने झारखंड में हमें सहयोगी माना, तब हम आपके साथी थे। लेकिन अब बिहार में जब हमारी बारी आई, तो हमें ‘छोटा दल’ समझ लिया गया। अब हम अपने आत्मसम्मान के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे।”
JMM नेताओं का कहना है कि उन्होंने काफी इंतजार किया, बातचीत की, पर कोई ठोस जवाब नहीं मिला। आखिरकार पार्टी ने फैसला किया कि अब गठबंधन की गुलामी नहीं, सम्मान की राजनीति की जाएगी।
JMM ने जिन छह सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है, वो सिर्फ राजनीतिक क्षेत्र नहीं, बल्कि उसके संघर्ष की पहचान हैं। इन इलाकों में पार्टी के कार्यकर्ता लंबे समय से सक्रिय हैं और कई बार स्थानीय मुद्दों पर बड़े आंदोलन भी कर चुके हैं। पार्टी का कहना है कि जब गठबंधन ने इन सीटों को RJD या कांग्रेस के खाते में डालने की कोशिश की, तो यह जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ धोखा जैसा था। इसी वजह से JMM ने कहा, “अब अपनी लड़ाई खुद लड़ी जाएगी।”
महागठबंधन के अंदर सीट बंटवारे की बातचीत पिछले दो महीनों से अटकी हुई थी। RJD करीब 165 सीटों पर दावा कर रही थी, जबकि कांग्रेस को 50 से कम सीटें देने को तैयार थी। JMM के हिस्से में कितनी सीटें आएंगी, इस पर कोई चर्चा ही नहीं हुई।
सूत्रों के मुताबिक, RJD ने JMM की उपस्थिति को सांकेतिक सहयोग मानकर टाल दिया। यानी, गठबंधन में छोटा दल होने का मतलब था तुम बस समर्थन दो, सीटों पर बात मत करो। इसी रवैये से JMM नेताओं का सब्र टूट गया।
JMM का यह कदम सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है। यह INDIA गठबंधन के भीतर बढ़ती असहजता का पहला संकेत माना जा रहा है। छोटे दलों में यह नाराज़गी पहले से थी कि कांग्रेस और RJD जैसी बड़ी पार्टियां सहयोगियों को बराबरी का दर्जा नहीं देतीं।
बिहार की राजनीति, सरकारी योजनाएं, रेलवे अपडेट्स, शिक्षा-रोजगार अवसर और सामाजिक मुद्दों की ताज़ा खबरें पाएं। पटना, गया, भागलपुर सहित हर जिले की रिपोर्ट्स के लिए Bihar News in Hindi सेक्शन देखें — तेज़ और सटीक खबरें Asianet News Hindi पर।