मुजफ्फरपुर के डॉक्टर ने रचा इतिहास, निमोनिया का इलाज खोजकर दुनिया को दी नई उम्मीद

Published : Apr 09, 2025, 04:05 PM IST
dr aditya

सार

Bihar News: बिहार के डॉ. आदित्य शेखर ने जर्मनी में रिसर्च कर निमोनिया की नई दवा खोजी, जो स्टैफिलोकोकस बैक्टीरिया को बेअसर करती है।

Bihar News: मुजफ्फरपुर जिले के प्रतिभाशाली जीव विज्ञानी डॉ. आदित्य शेखर ने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में ऐसा कीर्तिमान रचा है, जिससे न केवल बिहार, बल्कि पूरा देश गौरवान्वित है। जर्मनी के प्रतिष्ठित Helmholtz Centre for Infection Research में कार्यरत डॉ. शेखर ने निमोनिया के इलाज के लिए एक नई और एडवांस मेडिसिन डेवलप की है, जो विशेष रूप से Staphylococcus aureus नाम के घातक बैक्टीरिया से होने वाले इंफेक्शन के खिलाफ कारगर है। इसी बैक्टीरिया की वजह से फेफड़ों के जानलेवा संक्रमण होते हैं।

दवा नहीं मारती बैक्टीरिया, करती है ज़हर को निष्क्रिय

इस नई दवा की सबसे खास बात यह है कि यह ट्रेडिशनल एंटीबायोटिक्स की तरह बैक्टीरिया को मारती नहीं है, बल्कि यह उनसे पैदा होने वाले एक मुख्य टॉक्सिन (ज़हर) को निष्क्रिय कर देती है। Staphylococcus aureus नाम के बैक्टीरिया द्वारा छोड़ा गया यह टॉक्सिन फेफड़ों की कोशिकाओं को बुरी तरह नुकसान पहुंचाता है और रोग को घातक बनाता है। डॉ. आदित्य की दवा इस ज़हर पर सीधा वार करती है, जिससे बैक्टीरिया की हानि पहुंचाने वाली क्षमता लगभग शून्य हो जाती है। यह तरीका न केवल शरीर को बीमारी से लड़ने के लिए समय देता है, बल्कि यह एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस की समस्या से भी निपटने में मददगार हो सकता है।

प्री-क्लिनिकल ट्रायल में मिले बेहतर नतीजे

इस दवा का शुरुआती परीक्षण चूहों पर किया गया, जिसके बेहद सकारात्मक परिणाम सामने आए। जिन चूहों को जानलेवा निमोनिया था, वे इस दवा की मदद से न सिर्फ ठीक हुए, बल्कि पूरी तरह स्वस्थ होकर सामान्य जीवन में लौट आए। अब शोध टीम इसकी क्लिनिकल ट्रायल की तैयारियों में जुटी है, ताकि जल्द से जल्द यह दवा आम लोगों के लिए भी उपलब्ध कराई जा सके।

आठ वर्षों की कठिन तपस्या का मिला फल

डॉ. आदित्य ने इस दवा पर पिछले आठ वर्षों तक लगातार रिसर्च किया। कई बार असफलता मिली, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। आज उनकी मेहनत रंग लाई है। उनके शोध को एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में स्थान मिला है और इस खोज को अंतरराष्ट्रीय पेटेंट भी प्राप्त हो चुका है। मेडिकल साइंस समुदाय ने भी इस काम को सराहते हुए इसे एक मील का पत्थर बताया है।

 

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