
Bihar Politics: बिहार की राजनीति एक बार फिर सियासी भूचाल आया है। इस बार विवाद की जड़ हैं लालू यादव के साले सुभाष यादव, जिन्होंने दावा किया है कि 90 के दशक में सीएम आवास से ही अपहरण की डील हुआ करती थी। उस समय बिहार में लालू सरकार थी। उनके इस बयान के बाद राज्य की सियासत में बवाल मच गया है। इसको लेकर बीजेपी और विपक्ष ने राजद (RJD) को घेरना शुरू कर दिया है।
कौन हैं सुभाष यादव ?
सुभाष यादव राबड़ी देवी के भाई और लालू यादव के साले हैं। 90 के दशक में वे सत्ता के बेहद करीब रहे थे और लालू यादव के शासनकाल में बिहार की राजनीति में उनका दबदबा था। उनका दावा है कि बिहार में अपहरण एक उद्योग बन चुका था और जिसकी चाबी लालू यादव के पास ही थी।
बीजेपी ने क्या कहा?
सुभाष यादव ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि हर किसी को पता है कि उस दरम्यान अपहरण कौन कराता था। हाईकोर्ट तक ने उस समय बिहार की स्थिति को लेकर टिप्पणी करते हुए ‘जंगलराज’ शब्द का इस्तेमाल किया था। सुभाष यादव के इस खुलासे को बीजेपी ने बड़ा मुद्दा बना दिया है। बीजेपी नेता अनिल कुमार शर्मा ने कहा कि इस गंभीर मामले की जांच होनी चाहिए। उनका कहना है कि 1990 से 2005 के बीच हुई सभी अपहरण और फिरौती की घटनाओं की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए। शर्मा ने कहा कि सुभाष यादव सत्ता के काफी करीब थे, इसलिए उनके बयान को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह कानूनी तौर पर बेहद गंभीर मामला है, इसलिए इसकी न्यायिक जांच जरूरी है।
बचाव में उतरे साधु यादव
इस बयान के बाद लालू यादव के दूसरे साले साधु यादव ने सुभाष यादव पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा, "35 साल बाद अचानक सुभाष यादव को यह बात क्यों याद आई? इतने सालों तक वे चुप क्यों थे?" साधु यादव ने सुभाष यादव पर स्वयं अपराधियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कुछ गलत हुआ था, तो उस समय क्यों नहीं बोला गया?
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