बिहार के शिक्षकों का दर्द: 8 हजार में कैसे चलेगा घर? अब रात में कर रहे यह काम

Published : Nov 29, 2024, 12:06 PM ISTUpdated : Nov 29, 2024, 12:08 PM IST
Amit Kumar Teacher cum Food Delivery agent

सार

बिहार के पार्ट-टाइम शिक्षक महज 8 हजार रुपये में गुजारा करने को मजबूर हैं। दो सालों से सैलरी नहीं बढ़ी, कई महीनों का वेतन भी बकाया। रोज़ी-रोटी के लिए रात में करते हैं दूसरी नौकरी।

Underpaid Teachers of Bihar: दुनिया से कोविड महामारी विदा हो चुकी थी। लाखों लोगों की छूटी जॉब्स धीरे-धीरे मिलनी शुरू हो चुकी थी। साल 2022 आते-आते बिहार के हजारों नौजवानों की तरह भागलपुर के अमित कुमार के परिवार में भी खुशियां बरस रही थी। हो भी क्यों न, परिवार को सबसे बड़ा बेटा सरकारी स्कूल में नौकरी जो पा लिया था। हालांकि, नौकरी तो सरकारी थी लेकिन पार्ट-टाइम ही। लेकिन समय के साथ यह खुशियां धीरे-धीरे काफूर होने लगी। वजह यह कि आसमान छूती महंगाई और बिहार सरकार का पार्टटाइम शिक्षकों के करियर को आगे बढ़ाने के लिए कोई सही ढंग की गाइडलाइन न होना। देखते ही देखते दो साल बीता तो कुमार परिवार की तरह हजारों नौजवानों की चिंता और गहरी होती गई।

दरअसल, 2022 में 8 हजार रुपये महीना की नौकरी से शुरूआत करने वाले बिहार के पार्ट टाइम टीचर आज भी वहीं खड़े हैं। न तो उनकी सैलरी में कोई इजाफा हुआ न ही उनको इसकी उम्मीद दिख रही है। एक पार्ट-टाइम टीचर बताते हैं कि उन लोगों की नियुक्ति भले ही पार्ट-टाइम टीचर के रूप में हुई हो लेकिन वह करते तो फुलटाइम टीचिंग ही हैं। सरकार ने उनके बारे में सोच रही है न ही एलिजिबिलिटी टेस्ट ही करा रही है।

अमित कुमार की तरह रात में बहुत करते डिलेवरी ब्वाय का काम

अमित कुमार भले ही पार्ट-टाइम टीचर हैं लेकिन घर खर्च इस महंगाई में नहीं चल पाने के कारण वह डबल काम करते हैं। दिन में वह पार्ट-टाइम टीचर का काम करते हैं तो रात में वह फूड डिलेवरी एजेंट के रूप में घर-घर पार्सल पहुंचाते हैं। केवल अमित ही नहीं, तमाम ऐसे युवक जोकि उम्र के एक मोड़ पर पहुंच चुके हैं और पार्ट-टाइम टीचिंग कर रहे हैं, वह अपनी आजीविका चलाने के लिए साइड वर्क कर रहे हैं। अमित कुमार बताते हैं कि घर खर्च चलाना जब मुश्किल हो गया था तो अपनी पत्नी की सलाह मानते हुए फूड डिलेवरी एजेंट के रूप में जोमैटो पर रजिस्ट्रेशन कराया और अब पार्सल रात में बांटता हूं।

अमित बताते हैं कि 2.5 साल बाद भी उन लोगों की सैलरी महज 8 हजार रुपये ही है। एक रुपया अभी तक नहीं बढ़ी जबकि उनके ही स्कूल में दूसरे टीचर 42 हजार रुपये सैलरी निकाल रहे हैं। यह उन लोगों की सैलरी के पांच गुना है। एक ही काम के लिए दो-दो सैलरी स्ट्रक्चर? कैसे कोई अपनी जीविका चला पाएगा।

8 हजार की सैलरी भी नहीं मिलती समय से

केवल कम सैलरी की ही बात नहीं है। पार्ट-टाइम शिक्षकों की सैलरी में भी लेटलतीफी इन पर भारी पड़ती है। अमित जैसे सैकड़ों टीचर ऐसे हैं जोकि चार महीना से अपनी 8 हजार रुपये सैलरी का इंतजार कर रहे हैं। एक तो कम पे और दूसरा कई-कई महीनों बाद उसका क्रेडिट होना? कोई भी व्यक्ति कैसे अपनी आजीविका चला पाएगा? नाम न छापने की शर्त पर एक शिक्षक बताते हैं कि उधारी भी अब कोई नहीं देता। पहले बहुत सम्मान मिलता था समाज में लेकिन अब लोग मुंह फेर लेते हैं। सबको असलियत पता है कि उन जैसे शिक्षकों की हालत क्या है। कुछ दोस्त या परिचित ऐसे हैं जो मदद कर देते हैं लेकिन कोई कितनी बार किसी से मदद ले।

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