
Election Commission SIR controversy: बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि लोगों के पास आधार, राशन और मतदाता पहचान पत्र (EPIC) कार्ड होने के बावजूद, अधिकारी इसे प्रमाण नहीं मान रहे हैं। इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि ऐसे दस्तावेज़ यह दिखाने के लिए पर्याप्त हैं कि आप उस क्षेत्र के निवासी हैं। न्यायमूर्ति कांत ने दोहराया कि अगर सितंबर के अंत तक अवैधता साबित हो जाती है, तो भी पूरी प्रक्रिया रद्द की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट में एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कल, 13 अगस्त को बहस जारी रहेगी।
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में आधार कार्ड को निवास का पक्का प्रमाण नहीं माना जा सकता। याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सुनवाई के दौरान कहा कि चुनाव से महज ढाई महीने पहले 5 करोड़ लोगों के नाम अवैध घोषित करना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर 5 करोड़ लोग अवैध घोषित किए जाते हैं, तो हम यहां बैठे हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जो लोग 2003 तक मतदाता सूची में हैं, उन्हें कोई दस्तावेज़ जमा करने की ज़रूरत नहीं है। जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि नागरिकता पर क़ानून संसद द्वारा बनाया जाना चाहिए।
वरिष्ठ अधिवक्ता सिंघवी ने कहा कि मौजूदा मतदाता सूची में शामिल लोगों के ख़िलाफ़ नकारात्मक धारणा बनाना ग़लत है। यह मामला तत्काल हस्तक्षेप का हक़दार है, अन्यथा चुनाव प्रक्रिया गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि अगर सितंबर के अंत तक किसी भी स्तर पर अवैधता साबित हो जाती है, तो पूरी प्रक्रिया कैंसिल की जा सकती है।
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जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मंगलवार को राजद नेता मनोज झा की याचिका पर सुनवाई की। मनोज झा ने मतदाता सूची में अनियमितताओं का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा कि सूची में कई लोगों को मृत दिखाया गया है, जबकि वे जीवित हैं, और कई लोगों को मृत दिखाया गया है। न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि यह कहना गलत है कि बिहार में किसी के पास वैध दस्तावेज़ नहीं हैं। उन्होंने माना कि आधार और राशन कार्ड मौजूद हैं, लेकिन इन्हें निवास का पक्का प्रमाण नहीं माना जा सकता।
चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि इस तरह की प्रक्रिया में कुछ गलतियां होना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि 30 सितंबर को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित होने से पहले इन गलतियों को सुधारा जा सकता है। विपक्षी दलों का कहना है कि इस प्रक्रिया से करोड़ों पात्र मतदाता मतदान से वंचित हो सकते हैं। 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी थी कि अगर बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से बाहर किए गए तो वह तुरंत हस्तक्षेप करेगा। मतदाता सूची का मसौदा 1 अगस्त को प्रकाशित हुआ था और अंतिम सूची 30 सितंबर को जारी होनी है।
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राजद, तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, राकांपा (शरद पवार), भाकपा, समाजवादी पार्टी, शिवसेना (यूबीटी), झामुमो, भाकपा (माले) के नेताओं के साथ-साथ पीयूसीएल, एडीआर और कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने चुनाव आयोग द्वारा 24 जून को लिए गए फैसले को चुनौती दी है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ़ आधार कार्ड होने से यह साबित नहीं होता कि आप बिहार में रहते हैं। आपको अन्य दस्तावेज़ भी दिखाने पड़ सकते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर मतदाता सूची में बहुत ज़्यादा त्रुटियाँ हैं, तो वह हस्तक्षेप करेगा। अब देखना यह है कि चुनाव आयोग 30 सितंबर तक मतदाता सूची में कितना सुधार कर पाता है।
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