
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 नज़दीक आते ही भाजपा ने अपने संगठन और चुनावी रणनीति में बड़े बदलाव करने का मन बनाया है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, पिछले हफ़्ते केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई अहम बैठक में संकेत मिले हैं कि पार्टी पुराने नेताओं पर भरोसा कम कर नए और युवा चेहरों को मैदान में उतारेगी। इस कदम का मकसद मतदाताओं में पार्टी की नई छवि पेश करना और कमजोर या विवादित विधायकों से बचना है।
सूत्रों के अनुसार, भाजपा इस बार अपने उम्मीदवार तय करने के लिए संगठन या स्थानीय कमेटी पर पूरी तरह भरोसा नहीं करेगी। अमित शाह और अन्य वरिष्ठ नेताओं के निर्देश पर पार्टी कुछ सीटों पर नए और युवा नेताओं को मैदान में उतारने की योजना बना रही है। इसका उद्देश्य है कि मतदाताओं के बीच पार्टी की छवि और पकड़ मजबूत हो और चुनाव परिणामों में सुधार हो।
सूत्र बताते हैं कि सीमांचल, बेतिया, समस्तीपुर और अररिया जैसी सीटों पर लगभग अंतिम फैसला कर लिया गया है। इन सीटों पर पार्टी नए चेहरे उतारने की सोच रही है ताकि सत्ता विरोधी लहर और स्थानीय विवादों से निपटा जा सके। भाजपा का मानना है कि इन जिलों में पुराने नेताओं की पकड़ कमजोर हो चुकी है और नए उम्मीदवार ज्यादा असर डाल सकते हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में 39 सीटें ऐसी रही हैं जहाँ जीत-हार का अंतर 10,000 वोट से कम था। आरा, बरहरा, मुंगेर, बेगूसराय, बधवार, हाजीपुर, अमनौर और परिहार जैसी सीटों पर भाजपा की जीत का अंतर बेहद कम था। पार्टी अब इन सीटों पर नए उम्मीदवार उतारने की योजना पर विचार कर रही है ताकि चुनाव परिणामों में फायदा हो।
भाजपा उन 18 से अधिक सीटों पर भी ध्यान दे रही है जहाँ उसे पिछली बार 10,000 वोटों से हार मिली थी। इसमें कल्याणपुर, किशनगंज, सीवान और भागलपुर जैसी सीटें शामिल हैं, जहाँ अंतर लगभग 1000 वोट का था। कुरहानी, बखरी और डेहरी जैसी सीटों पर भी हार का अंतर बहुत कम था। पार्टी का मानना है कि नए और ज्यादा प्रभावशाली चेहरे इन क्षेत्रों में स्थिति बदल सकते हैं।
भाजपा कुछ पूर्व और मौजूदा सांसदों को भी चुनाव में उतारने पर विचार कर रही है। इसके अलावा, पार्टी कुछ नेताओं को जो कथित रूप से नाराज बताए जा रहे हैं, उन्हें चुनाव में उतारने की योजना बना रही है। इसके पीछे उद्देश्य है कि बगावत या विरोध की वजह से पार्टी को नुकसान न हो।
भाजपा उन विधायकों और नेताओं को किनारा करने की तैयारी कर रही है, जिनके पिछले कुछ समय में बागी तेवर दिखाई दिए। विशेषकर वे विधायक जिन्होंने जनवरी 2024 में नीतीश कुमार के एनडीए में शामिल होने के समय विरोध किया था। इसके अलावा, जिन विधायकों की उम्र 75 साल या उसके आसपास है, उनके टिकट पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। पार्टी का मानना है कि युवा और सक्रिय नेताओं के चुनावी मैदान में उतरने से पार्टी का प्रदर्शन बेहतर होगा।
भाजपा ने अपने संगठन और चुनाव संचालन की भी समीक्षा की है। अमित शाह की बैठक में 150 से ज़्यादा सीटों पर चर्चा हुई और चुनाव कार्यक्रम के प्रकाशित होने के बाद ही टिकटों की अंतिम घोषणा की जाएगी। पार्टी यह सुनिश्चित करना चाहती है कि उम्मीदवार मजबूत हों और किसी भी प्रकार की बगावत या विरोध से पार्टी को नुकसान न पहुंचे।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले भाजपा की यह रणनीति साफ़ दिखाती है कि पार्टी पुराने नेताओं पर निर्भर रहकर चुनाव नहीं जीतना चाहती। नए और युवा चेहरे, रणनीतिक सीट चयन और संगठनात्मक मजबूती के जरिए भाजपा विधानसभा चुनाव में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, अगले कुछ हफ़्तों में टिकटों का अंतिम एलान किया जाएगा और यह बदलाव बिहार की राजनीतिक दिशा तय कर सकता है।
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