
पटनाः अगर भारत की राजनीति में बिहार की बात करें, तो यह सिर्फ नेता पैदा करने वाली धरती ही नहीं, बल्कि बदलाव और संघर्ष की जमीन भी रही है। और इस धरती से निकला एक नाम है श्री कृष्ण सिंह, जिन्हें हम प्यार से ‘श्री बाबू’ कहते हैं। लेकिन उनके बारे में सिर्फ यह जानना काफी नहीं है कि वे बिहार के पहले मुख्यमंत्री थे। उनकी कहानी कुछ अलग ही है... जेल की सजा, स्वतंत्रता संग्राम, और सत्ता की राह तक।
21 अक्टूबर 1887 को नवादा जिले के छोटे से ऊमरा गांव में जन्मे कृष्ण सिंह ने अपने जीवन की शुरुआत सामान्य परिवार से की। लेकिन उनकी सोच साधारण नहीं थी। वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे सीधे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। महात्मा गांधी के नेतृत्व वाले आंदोलनों में हिस्सा लिया और जेल की सजा भी भुगती। उस समय के बिहार के लोग उन्हें सिर्फ नेता नहीं, बल्कि अपने हक की आवाज़ मानते थे।
भारत आजाद होने से पहले ही श्री कृष्ण सिंह बिहार के प्रमुख नेता बन चुके थे। उन्हें ‘प्रिमियर’ कहा जाता था, यानी आज के मुख्यमंत्री की तरह राज्य का मुखिया। 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ और लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू हुई। इस नए संविधानिक ढांचे में श्री बाबू बिहार के पहले मुख्यमंत्री बन गए। यानि, जेल की सलाखों से लेकर मुख्यमंत्री के कुर्सी तक का सफर, उनका जीवन किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं।
श्री बाबू ने न सिर्फ पद संभाला, बल्कि बिहार के भविष्य को नई दिशा दी। उनके कार्यकाल में कई बड़े औद्योगिक प्रोजेक्ट और शैक्षणिक संस्थान स्थापित हुए। हिंदुस्तान स्टील प्लांट, हजारीबाग कोल माइंस और कई कॉलेज, ये सब उनके दूरदर्शिता के नतीजे थे।
श्री कृष्ण सिंह राजनीति में सिर्फ सत्ता पाने वाले नेता नहीं थे। वे समाज सुधारक थे। महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण पर उन्होंने ध्यान दिया, पिछड़े वर्ग और गरीबों के लिए नई योजनाएं लागू कीं। उनका मानना था कि शिक्षा और समान अवसर ही समाज को मजबूत बनाते हैं।
श्री बाबू की कहानी सिर्फ राजनीतिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं। यह संघर्ष की कहानी है, धैर्य और जनता के प्रति जिम्मेदारी की कहानी है। जेल में बिताए गए दिन, आंदोलन की कठिनाइयां और जनता के बीच उनका प्रभाव, यही अनुभव उन्हें एक बेहतर मुख्यमंत्री बना गया।
आज भी बिहार के हर कोने में श्री बाबू के योगदान का जिक्र आदर के साथ किया जाता है। उनका संघर्ष और दूरदर्शिता नए नेताओं और युवाओं के लिए प्रेरणा है। उनकी कहानी साबित करती है कि सच्चा नेतृत्व वही है, जो जनता के लिए खुद को जोखिम में डाल सके।
श्री कृष्ण सिंह यानी श्री बाबू, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया, जेल गए, और फिर बिहार के पहले मुख्यमंत्री बनकर राज्य को नई दिशा दी, उनकी कहानी बिहार की राजनीति और समाज के लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत रहेगी।
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