
डेहरी विधानसभा चुनाव 2025: रोहतास जिले के पूर्वी प्रवेश द्वार माने जाने वाले डेहरी विधानसभा क्षेत्र की राजनीतिक कहानी बिहार की किसी भी अन्य सीट से अलग है। 1951 से लेकर 2020 तक हुए कुल 17 विधानसभा चुनावों में से 10 बार मुस्लिम उम्मीदवारों ने यहाँ जीत का परचम लहराया है। यह आंकड़ा न केवल इस क्षेत्र में मुस्लिम नेताओं के राजनीतिक प्रभाव को दर्शाता है, बल्कि डेहरी की अनूठी जनसांख्यिकीय संरचना और मतदान पैटर्न को भी उजागर करता है।
डेहरी की राजनीतिक चर्चा मोहम्मद इलियास हुसैन के नाम के बिना अधूरी है। उन्होंने इस सीट से पांच बार जीत हासिल की है, जो किसी भी नेता के लिए रिकॉर्ड है। सबसे खास बात यह है कि उन्होंने 1990, 1995, और 2000 में लगातार तीन बार (हैट्रिक) जीत दर्ज की। इलियास हुसैन का राजनीतिक सफर विभिन्न दलों के साथ रहा। हालांकि, भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद 2018 में उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई, जिसके बाद 2019 में उपचुनाव हुआ।
डेहरी विधानसभा क्षेत्र की एक और दिलचस्प विशेषता यह है कि 17 चुनावों में केवल 9 नेताओं ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है। यह इस बात का प्रमाण है कि यहाँ मतदाता अपने नेताओं पर भरोसा करके उन्हें बार-बार चुनते रहे हैं।
डेहरी की राजनीतिक कहानी में सबसे दिलचस्प अध्याय 2005 और 2010 का है। इन दो चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की, और वो भी पति-पत्नी की जोड़ी ने। 2005 में प्रदीप कुमार जोशी ने निर्दलीय के रूप में राजद के मोहम्मद इलियास हुसैन को 43,277 वोटों से हराया। प्रदीप जोशी को 70,558 वोट मिले, जबकि इलियास हुसैन को केवल 27,281 वोट मिले। वहीं इसके बाद 2010 के चुनाव में ज्योति रश्मि (प्रदीप जोशी की पत्नी) ने फिर से इलियास हुसैन को हराया, इस बार जीत का मार्जिन 9,815 वोट था। ज्योति रश्मि को 43,634 वोट मिले थे। ज्योति रश्मि डेहरी से जीतने वाली अब तक की एकमात्र महिला विधायक हैं।
1960 से 1970 के दशक में कांग्रेस का डेहरी पर मजबूत पकड़ था। 1962 से 1985 तक कांग्रेस ने पांच बार जीत दर्ज की। लेकिन 1985 के बाद कांग्रेस फिर कभी यहाँ से नहीं जीत पाई। कांग्रेस से 1962, 1967 में अब्दुल क्यूम अंसारी, 1969 में रियासत करीम, 1972 में अब्दुल क्यूम अंसारी (तीसरी बार) और फिर 1985 में खालिद अनवर अंसारी की जीत हुई।
मोहम्मद इलियास हुसैन की अयोग्यता के बाद हुए उपचुनाव में सत्यनारायण सिंह ने भाजपा के टिकट पर पहली बार डेहरी में भाजपा का खाता खोला। हालांकि 2020 में हुए चुनाव में राजद ने वापसी कर ली। यहां से राजद के फतेह बहादुर सिंह ने भाजपा के सत्यनारायण सिंह को मात्र 464 वोटों के अंतर से हराकर सीट वापस जीत ली। यह बिहार के सबसे कम अंतर की जीत में से एक थी।
डेहरी का औद्योगिक इतिहास भी इसकी राजनीति को प्रभावित करता रहा है। 1930 के दशक में रामकृष्ण डालमिया द्वारा स्थापित डालमियानगर कभी औद्योगिक केंद्र के रूप में फला-फूला था। लेकिन 1970 के दशक में अपराध, डकैती और श्रमिक आंदोलनों के कारण यह उजड़ गया। आज डेहरी में छोटे उद्योग जैसे आरा मिल, घी प्रोसेसिंग, प्लास्टिक पाइप, और फुटवियर निर्माण चल रहे हैं।
2025 के आगामी विधानसभा चुनाव में डेहरी फिर से चर्चा में है। 2020 में मात्र 464 वोटों के अंतर से हुई जीत के बाद यह सीट अब स्विंग सीट की श्रेणी में आ गई है। भाजपा और राजद दोनों के लिए यह सीट महत्वपूर्ण है। प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी के चुनाव में आने से समीकरण और भी दिलचस्प हो सकते हैं।
| वर्ष | पार्टी | विजयी प्रत्याशी |
|---|---|---|
| 1951 | सोशलिस्ट पार्टी | बसावन सिंह |
| 1957 | पीएसपी | बसावन सिंह |
| 1962 | कांग्रेस | अब्दुल क्यूम अंसारी |
| 1967 | कांग्रेस | अब्दुल क्यूम अंसारी |
| 1969 | कांग्रेस | रियासत करीम |
| 1972 | कांग्रेस | अब्दुल क्यूम अंसारी |
| 1977 | जनता पार्टी | बसावन सिंह |
| 1980 | जेएनपी (एससी) | मोहम्मद इलियास हुसैन |
| 1985 | कांग्रेस | खालिद अनवर अंसारी |
| 1990 | जनता दल | मोहम्मद इलियास हुसैन |
| 1995 | जनता दल | मोहम्मद इलियास हुसैन |
| 2000 | राजद | मोहम्मद इलियास हुसैन |
| 2005 | निर्दलीय | प्रदीप कुमार जोशी |
| 2010 | निर्दलीय | ज्योति रश्मि |
| 2015 | राजद | मोहम्मद इलियास हुसैन |
| 2019 (उपचुनाव) | भाजपा | सत्यनारायण सिंह |
| 2020 | राजद | फतेह बहादुर सिंह |
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