
पटनाः बिहार की राजनीति आज के समय में दो प्रमुख चेहरे के आसपास घूमती है नीतीश कुमार और लालू यादव। हालांकि इनसे पहले बिहार के सत्ता की चाभी अलग अलग दलों के हाथ में थी खासकर कांग्रेस। लेकिन 1977 का विधानसभा चुनाव (Bihar Politics 1977-2025) एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हुआ, जिसने राज्य की सत्ता संरचना को स्थायी रूप से बदल दिया। यह चुनाव आपातकाल की समाप्ति के ठीक बाद हुआ और इसने पहली बार यह दर्शाया कि कांग्रेस पार्टी, जो स्वतंत्रता के बाद से लगातार सबसे बड़ी पार्टी रही थी, राज्य में दूसरे नंबर पर खिसक गई। 1977 का यह जनादेश बिहार में राष्ट्रीय दलों के पतन और क्षेत्रीय राजनीतिक शक्तियों के उदय की कहानी का शुरुआती अध्याय बना।
आजादी के बाद से लेकर 1972 तक, बिहार में हुए प्रत्येक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी रही। 1985 के चुनाव में कांग्रेस ने आखिरी बार राज्य में 100 से अधिक सीटें (196 सीटें) जीतकर अपनी ऐतिहासिक ताकत का प्रदर्शन किया।
इसके बाद, 1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एक बार फिर से दूसरे नंबर पर आ गई, जब जनता दल ने स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाई। यही वह दौर था, जब बिहार में क्षेत्रीय दलों का दबदबा बढ़ना शुरू हुआ और 'मंडल राजनीति' ने जोर पकड़ा।
1990 और 1995 के चुनाव में जनता दल ने सरकार बनाई, लेकिन बाद में यह पार्टी कमजोर होकर विभिन्न क्षेत्रीय गुटों में बँट गई, जिनमें प्रमुख रूप से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) शामिल थे। 2000 से लेकर 2020 तक बिहार में हुए सभी 6 विधानसभा चुनावों में हर बार सबसे बड़ी पार्टी क्षेत्रीय दल ही रही...
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 1980 में बिहार में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा, जिसमें 246 उम्मीदवार उतारने के बावजूद उसे केवल 21 सीटों पर ही जीत मिली। तब से लेकर अब तक, भाजपा ने 10 विधानसभा चुनाव लड़े हैं, लेकिन वह कभी भी 100 सीटों का आंकड़ा पार नहीं कर सकी है। 2010 के चुनाव में भाजपा ने अपनी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 91 सीटें जीती थीं, लेकिन फिर भी वह अकेले सरकार बनाने में विफल रही और जदयू के साथ गठबंधन में सत्ता में रही। 2020 में भाजपा ने 74 सीटें जीतीं, जबकि जदयू को 43 सीटें मिलीं। इसके बावजूद, गठबंधन में मुख्यमंत्री का पद नीतीश कुमार को ही सौंपा गया।
1977 से लेकर अब तक बिहार की राजनीति ने यह स्थापित कर दिया है कि राष्ट्रीय पार्टियाँ (कांग्रेस और भाजपा), जो कभी सत्ता का केंद्र हुआ करती थीं, अब ज्यादातर सहयोगी की भूमिका में हैं।
वर्तमान परिदृश्य में, राजद और जदयू जैसे क्षेत्रीय दल ही बिहार के राजनीतिक क्षितिज पर हावी हैं और सत्ता की चाबी उन्हीं के पास रहती है। बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर क्षेत्रीय दलों का यह दबदबा आज भी कायम है। भाजपा के लिए 100 सीटों का आंकड़ा पार करना अब भी एक बड़ी चुनौती है, जबकि कांग्रेस अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पाने के प्रयास में है।
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