
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में महागठबंधन के अंदर 'फ़्रेंडली फाइट' यानी आपसी टकराव ने चुनावी हवा को और गर्म कर दिया है। हालांकि कुछ सीटों पर अंततः समझौता हो गया, लेकिन अब भी 11 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहाँ महागठबंधन के सहयोगी दल आपस में ही मुकाबले में हैं। यह स्थिति महागठबंधन की एकता पर सवाल तो उठाती ही है, साथ ही एनडीए को अप्रत्यक्ष लाभ भी देती दिख रही है।
पहले जिन सीटों पर टकराव तय माना जा रहा था, उनमें लालगंज और रोसड़ा सीटों पर सियासी राहत मिल गई है। लालगंज में कांग्रेस उम्मीदवार ने अपना नामांकन वापस ले लिया, जिसके बाद वहाँ महागठबंधन में अंदरूनी टकराव टल गया। वहीं, रोसड़ा सीट से सीपीआई प्रत्याशी लश्रण पासवान का नामांकन रद्द हो गया। इससे उस सीट पर भी अब सीधा मुकाबला रहेगा। लेकिन इसके बावजूद अब भी 11 ऐसी सीटें हैं जहाँ महागठबंधन के भीतर खुली बगावत और विरोधाभास दिख रहा है।
महागठबंधन के घटक दलों राजद, कांग्रेस, सीपीआई और वीआईपी के बीच आपसी तालमेल की कमी अब साफ झलक रही है। कुल 11 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं...
महागठबंधन ने बिहार चुनाव में बीजेपी और एनडीए को चुनौती देने के लिए ‘एकजुटता’ की बात कही थी, लेकिन जमीनी हकीकत में सीट बंटवारे का विवाद और स्थानीय वर्चस्व की लड़ाई ने इस एकता की नींव को हिला दिया है। इन सीटों पर कार्यकर्ता और स्थानीय नेताओं के बीच खींचतान खुलकर सामने आ गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन 11 सीटों पर महागठबंधन के भीतर की फाइट सीधे तौर पर एनडीए को ‘वॉकओवर’ जैसी स्थिति दे सकती है। जहाँ वोट बैंक बंटेगा, वहाँ बीजेपी और जेडीयू के उम्मीदवारों के लिए जमीन और आसान हो सकती है।
इस बीच, दो और सीटों पर चुनावी समीकरण बदले हैं। मढ़ौरा सीट पर एनडीए के प्रत्याशी का नामांकन रद्द हो गया है, जबकि सुगौली सीट पर महागठबंधन प्रत्याशी का नामांकन खारिज हुआ है। इससे इन दोनों जगहों पर नया राजनीतिक संतुलन बन गया है, और स्थानीय स्तर पर नए गठबंधन या बगावत की संभावनाएं भी बढ़ गई हैं।
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