
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राजनीतिक समीकरण कब बदल जाएं, इसकी कोई गारंटी नहीं होती। राजद के मुखिया लालू प्रसाद यादव पिछले दो दिनों से इसी अनिश्चितता को उजागर कर रहे हैं। लालू ने अपने दो पूर्व सबसे करीबी सहयोगियों, रामकृपाल यादव (BJP) और श्याम रजक (JDU) के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया है, जो कभी उनके सबसे विश्वस्त माने जाते थे। लालू की यह 'पुराने साथियों से सीधी टक्कर' अब चुनावी गलियारों में सबसे बड़ी चर्चा का विषय बन गई है।
सोमवार को लालू प्रसाद यादव ने दानापुर विधानसभा सीट पर आरजेडी प्रत्याशी रीतलाल यादव के समर्थन में भव्य रोड शो किया। यह सीट इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि रीतलाल यादव के सामने बीजेपी के टिकट पर रामकृपाल यादव हैं, जो एक जमाने में लालू के सबसे निकटतम सहयोगी और संकटमोचक हुआ करते थे। भीड़ से घिरे लालू ने रामकृपाल पर तीखे हमले बोले। उन्होंने जनता से भावुक अपील की कि वे रामकृपाल यादव के पुराने विश्वासघात को याद रखें और आरजेडी को वोट दें। लालू की इस सक्रियता से दानापुर में मुकाबला बेहद रोचक हो गया है, जहाँ लालू ने अपने पूर्व विश्वस्त के खिलाफ सीधे-सीधे चुनावी जंग का आह्वान किया है।
मंगलवार को, लालू यादव ने अपना रोड शो फुलवारी शरीफ सीट पर केंद्रित किया। यहाँ उन्होंने महागठबंधन के सहयोगी दल सीपीआई-एमएल के उम्मीदवार गोपाल रविदास के पक्ष में एक विशाल जनसभा की। इस सीट पर जेडीयू के टिकट पर श्याम रजक गोपाल रविदास को चुनौती दे रहे हैं। श्याम रजक भी लालू के पुराने साथी हैं, जिन्होंने लंबे समय तक आरजेडी में सक्रिय भूमिका निभाई थी। लालू ने जनसभा में अपने पुराने साथी पर तीखा प्रहार करते हुए कहा, “जो लोग बार-बार दल बदलते हैं, वे जनता के हितैषी नहीं हो सकते। ऐसे नेता सिर्फ सत्ता की लालच में जनता को भूल जाते हैं।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लालू यादव की यह सीधा प्रचार रणनीति आरजेडी कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार कर रही है। हज़ारों की भीड़ और समर्थकों के नारों के बीच उनका रोड शो चुनावी चर्चा का केंद्र बन गया है। लालू अपने रोड शो के माध्यम से न केवल अपने उम्मीदवारों के लिए वोट मांग रहे हैं, बल्कि उन पुराने सहयोगियों को भी सीधे निशाने पर ले रहे हैं, जिन्होंने उन्हें छोड़कर एनडीए का दामन थामा है। दानापुर और फुलवारी शरीफ में लालू का सीधा हस्तक्षेप यह दर्शाता है कि यह चुनाव अब केवल पार्टी बनाम पार्टी का नहीं, बल्कि लालू बनाम उनके पूर्व सहयोगियों की निजी साख का भी बन चुका है।
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