
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के बीच एक क्षेत्र ऐसा है जो एनडीए के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है - मगध-शाहाबाद। यह वह इलाका है जहां 2020 के चुनाव में एनडीए को भारी हार का सामना करना पड़ा था और जो आज तक उनके लिए एक कमजोर कड़ी बना हुआ है। लेकिन इस बार क्या स्थिति बदल सकती है, यह देखना दिलचस्प होगा।
मगध-शाहबाद क्षेत्र की कुल 62 विधानसभा सीटों में से 2020 के चुनाव में मगध प्रमंडल के पांच जिलों (गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल और नवादा) की 26 सीटों में से एनडीए को केवल 6 सीटें मिली थीं। इनमें भी इनमें औरंगाबाद की सभी 6 सीटों पर NDA का खाता साफ रहा, जबकि जहानाबाद की तीनों सीटों पर महागठबंधन का कब्जा रहा। अरवल की दोनों सीटों पर NDA को शून्य मिला। नवादा में 5 में से केवल 1 सीट (वारिसलीगंज) NDA के खाते में आई। गया में 10 सीटों में 5-5 का बंटवारा हुआ, जो NDA के लिए सबसे बेहतर प्रदर्शन था। शाहाबाद क्षेत्र में स्थिति और भी खराब रही। कैमूर जिले में, जहां 2015 में भाजपा ने चार सीटें जीती थीं, 2020 में एक भी सीट नहीं मिली। रोहतास में भी NDA का खाता साफ हो गया था।
सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) का इस पूरे क्षेत्र में खाता तक नहीं खुला था। मगध-शाहबाद की 37 सीटों में जेडीयू एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। एनडीए की जो मात्र 6 सीटें आई थीं, वे भी भाजपा (3) और जीतन राम मांझी के हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (3) के खाते में गई थीं।
2024 के लोकसभा चुनाव में भी एनडीए का प्रदर्शन इस क्षेत्र में संतोषजनक नहीं रहा। महागठबंधन ने पाटलिपुत्र, जहानाबाद और औरंगाबाद की लोकसभा सीटें एनडीए से छीन लीं। आरजेडी और सीपीआई माले की जुगलबंदी ने एनडीए के कई दिग्गजों को हराया, जिनमें केंद्रीय मंत्री आरके सिंह और उपेंद्र कुशवाहा भी शामिल थे।
इस क्षेत्र में यादव-मुस्लिम गठबंधन महागठबंधन की मजबूत नींव है। इसके अलावा भाकपा-माले का दलित वोटर्स पर मजबूत प्रभाव एनडीए के लिए बड़ी चुनौती है। 2020 में माले ने अपनी कुल 12 सीटों में से 4 सीटें इसी क्षेत्र से जीती थीं। कुशवाहा समुदाय भी इस क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभाता है। 2020 में उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए से अलग होने और चिराग पासवान की अलगाववादी रणनीति ने एनडीए को भारी नुकसान पहुंचाया था।
2025 के विधानसभा चुनाव में एनडीए ने मगध-शाहबाद क्षेत्र को लेकर एक नई रणनीति तैयार की है। इसके तहत इस क्षेत्र को अपनी प्राथमिकता बनाते हुए एनडीए ने संगठन को मजबूत करने और चुनावी मैदान में वापसी की पूरी तैयारी कर ली है। सबसे बड़ा बदलाव गठबंधन में नए चेहरों को शामिल करना है। चिराग पासवान के साथ आने से युवाओं और पिछड़े वर्गों में प्रभाव बढ़ने की उम्मीद है, वहीं उपेंद्र कुशवाहा की वापसी से कुशवाहा वोट बैंक पर पकड़ मजबूत करने की रणनीति बनाई जा रही है। इसके अलावा, जीतन राम मांझी के दलित मतदाताओं पर प्रभाव को लेकर एनडीए आशान्वित है।
संगठनात्मक मजबूती के लिए एनडीए ने बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने और जमीनी तैयारी पर विशेष ध्यान दिया है। हर बूथ पर प्रभावी नेटवर्क बनाने की कोशिश की जा रही है ताकि पिछली बार की हार की भरपाई की जा सके। साथ ही, विकास का एजेंडा भी एनडीए की रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गया दौरे के दौरान 12-13 हजार करोड़ की विकास परियोजनाओं की घोषणा ने एनडीए को चुनावी मुद्दों में बढ़त दिलाने का मौका दिया है। सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी योजनाओं को लेकर एनडीए मतदाताओं के बीच भरोसा बनाने की कोशिश कर रहा है। इन बदलावों के जरिए एनडीए इस बार पिछली हार की भरपाई कर सत्ता में वापसी का लक्ष्य लेकर मैदान में उतरा है।
महागठबंधन के लिए भी यह क्षेत्र चुनौतीपूर्ण है। सीट बंटवारे को लेकर राजद और माले के बीच तनाव की खबरें आ रही हैं। माले की 40 सीटों की मांग ने राजद को परेशानी में डाला है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, मगध-शाहबाद की ये 62 सीटें बिहार चुनाव 2025 का रुख तय करने वाली हो सकती हैं। एनडीए के लिए यह सिर्फ सीट जीतने का मामला नहीं, बल्कि अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा को बचाने की लड़ाई है।
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