
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के बीच सियासी रणनीतिकारों की नजरें उन 12 सीटों पर टिकी हुई हैं, जहाँ 2020 के विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत 50% से कम था। इन सीटों ने पिछली बार चुनावी नतीजों को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन 12 में से 9 सीटें एनडीए के खाते में गई थीं, जबकि महागठबंधन को केवल 3 सीटें मिली थीं।
आंकड़े बताते हैं कि बिहार में जब वोट प्रतिशत कम रहा, तब एनडीए को अधिक फायदा हुआ। इसलिए 2025 में महागठबंधन भी इन कम मतदान वाली सीटों पर खास ध्यान दे रहा है। पार्टी का मानना है कि यदि शहरी और कम वोटिंग वाले क्षेत्रों में वोटरों को अधिक सक्रिय किया गया, तो ये सीटें किंगमेकर साबित हो सकती हैं।
पटना जिले की तीन सीटें कुम्हरार, बांकीपुर और दीघा 2020 के चुनाव में सबसे कम मतदान वाली रही थीं। कुम्हरार में सिर्फ 35.2%, बांकीपुर में 35.9% और दीघा में 36.7% वोटिंग हुई थी। इन सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवारों ने भारी मतों से जीत दर्ज की।
जानकार बताते हैं कि इन क्षेत्रों में बीजेपी का कोर वोटर स्थिर रहा और कम मतदान के बावजूद पार्टी को बड़ा लाभ मिला।
वहीं महागठबंधन ने शहरी और ग्रामीण मिश्रित सीटों पर बेहतर प्रदर्शन किया।
राजद को शाहपुर और इस्लामपुर जैसे मुस्लिम-यादव समीकरण वाली सीटों पर सफलता मिली।
जदयू को अस्थावां सीट पर सफलता मिली, जबकि मुंगेर और वारसलीगंज जैसे सीटों पर बीजेपी विजयी रही।
2015 के विधानसभा चुनाव में पटना की तीन प्रमुख सीटों कुम्हरार, बांकीपुर और दीघा में मतदान प्रतिशत 38-42% था। लेकिन 2020 में यह गिरकर 35-37% रह गया। इस गिरावट का फायदा एनडीए को मिला, जबकि महागठबंधन अपने पारंपरिक वोट बैंक को सक्रिय नहीं कर पाया।
जानकारों का कहना है कि बिहार चुनाव 2025 में महागठबंधन की रणनीति इन कम वोटिंग वाली सीटों को टारगेट करना और शहरी क्षेत्रों में मतदाता जागरूकता बढ़ाना है। यही सीटें अब किंगमेकर बन सकती हैं और अंतिम नतीजे तय करने में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।
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