
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 नजदीक आते ही नालंदा जिला एक बार फिर राजनीतिक रूप से गरमाने लगा है। 2020 के विधानसभा चुनाव में जिले की कुल सात सीटों में से छह पर एनडीए का कब्जा रहा था, जबकि केवल इस्लामपुर सीट पर राजद ने जीत दर्ज की थी। अब 2025 के चुनाव में महागठबंधन जदयू के इस मजबूत किले में सेंध लगाने की रणनीति पर काम कर रहा है, वहीं एनडीए अपनी पकड़ बरकरार रखने के लिए पूरी ताकत झोंक रहा है।
नालंदा जिले में अस्थावन, बिहारशरीफ, राजगीर (अनुसूचित जाति), इस्लामपुर, हिलसा, नालंदा और हरनौत मिलाकर कुल सात विधानसभा सीटें हैं। 2020 में जदयू ने पांच सीटें अपने नाम की थीं, जबकि भाजपा ने एक और राजद ने सिर्फ इस्लामपुर पर जीत हासिल की थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला होने के कारण जदयू को यहाँ विशेष लाभ मिला। श्रवण कुमार जैसे नेताओं की व्यक्तिगत पकड़, नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार, पर्यटन और आधारभूत सुविधाओं में सुधार ने एनडीए की स्थिति मजबूत की है।
एनडीए की मजबूती के पीछे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कुर्मी समुदाय में प्रभाव, महादलित कल्याण योजनाओं का लाभ, महिला सशक्तिकरण कार्यक्रमों का प्रभाव, और आधारभूत विकास योजनाओं का योगदान शामिल है। बिहारशरीफ में भाजपा की सक्रियता, राजगीर में पर्यटन बढ़ावा, बेहतर सड़क संपर्क, बिजली और पानी जैसी सुविधाओं ने भी एनडीए की पकड़ मजबूत की है।
हालाँकि इस्लामपुर सीट पर राजद की जीत ने दिखा दिया कि नालंदा में महागठबंधन की संभावनाएँ कम नहीं हैं। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन यादव, मुस्लिम और महादलित मतदाताओं में पैठ बनाने की कोशिश कर रहा है। बेरोजगारी, पलायन, कृषि संकट और युवाओं के मुद्दों को लेकर एनडीए पर राजनीतिक दबाव बनाया जा रहा है। कांग्रेस भी सक्रिय हो रही है और अपनी राजनीतिक यात्राओं के माध्यम से समर्थन जुटाने की कोशिश कर रही है।
नालंदा में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, कृषि संकट और आधारभूत ढांचे से जुड़े मुद्दे चुनाव में अहम भूमिका निभाएँगे। नालंदा विश्वविद्यालय से स्थानीय युवाओं को अपेक्षित लाभ न मिलना, ग्रामीण कनेक्टिविटी की कमी, औद्योगीकरण की धीमी गति और युवाओं का पलायन – ये सब मुद्दे चुनावी बहस का केंद्र बन सकते हैं।
नालंदा की राजनीति में जातीय समीकरण बेहद प्रभावशाली हैं। कुर्मी वोट बैंक में नीतीश कुमार की मजबूत पकड़ है, जबकि यादव और मुस्लिम मतदाता महागठबंधन के पक्ष में लामबंद हो सकते हैं। महादलित समुदाय में बिखरे वोट समीकरण को बदल सकते हैं। वहीं, अगड़ी जातियों में भाजपा की स्वीकार्यता बढ़ रही है। महिलाओं में जदयू की योजनाओं का असर भी निर्णायक हो सकता है।
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