
बिहार चुनाव 2025: जमुई जिले के चकाई विधानसभा क्षेत्र में शनिवार को आयोजित एनडीए कार्यकर्ता सम्मेलन उस समय हंगामे में बदल गया जब मंत्री सुमित कुमार सिंह और पूर्व एमएलसी संजय प्रसाद के समर्थकों के बीच तीखी झड़प हो गई। मंच पर नेताओं के स्वागत और जगह को लेकर शुरू हुई नोकझोंक देखते ही देखते मारपीट में बदल गई। कार्यकर्ताओं के बीच धक्का-मुक्की, लात-घूसे और नारेबाजी का दौर शुरू हो गया, जिससे सम्मेलन का माहौल पूरी तरह बिगड़ गया।
मंच पर मौजूद सुरक्षाकर्मियों और पुलिस बल को स्थिति संभालने के लिए दौड़ना पड़ा। बड़ी मुश्किल से जवानों ने दोनों पक्षों को अलग किया और नेताओं को सुरक्षित बाहर निकाला। सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में केंद्रीय मंत्री रामनाथ ठाकुर और जदयू के वरिष्ठ नेता श्याम रजक मौजूद थे। लेकिन मंच पर हंगामे का माहौल देखकर दोनों नेताओं ने सभा को संबोधित करना उचित नहीं समझा और बिना भाषण दिए ही लौट गए।
कार्यक्रम स्थल पर मौजूद लोगों ने बताया कि विवाद की शुरुआत उस समय हुई जब पूर्व एमएलसी संजय प्रसाद किसी बात पर नाराज़गी जताने लगे। तभी मंत्री सुमित कुमार सिंह खड़े हो गए, जिससे दोनों पक्षों में बहस शुरू हो गई। देखते ही देखते उनके समर्थक भी नारेबाजी करते हुए एक-दूसरे से उलझ पड़े। इससे मंच रणक्षेत्र में तब्दील हो गया।
इस दौरान लोजपा (रामविलास) के नेता संजय मंडल भी मंच पर जगह न मिलने से नाराज दिखाई दिए। उन्होंने अपने समर्थकों के साथ कार्यक्रम स्थल छोड़ दिया। पूर्व एमएलसी संजय प्रसाद ने भी केंद्रीय नेताओं के लौटते ही अपने समर्थकों के साथ सम्मेलन छोड़ दिया। हालाँकि मंत्री सुमित कुमार सिंह अपने समर्थकों के साथ मंच पर डटे रहे और कार्यक्रम जारी रखने का प्रयास करते दिखे, लेकिन बिगड़े माहौल के बीच कार्यकर्ताओं में निराशा साफ देखी गई।
सियासी जानकारों का कहना है कि चकाई विधानसभा क्षेत्र पहले से ही राजनीतिक रूप से संवेदनशील है। पूर्व एमएलसी संजय प्रसाद आगामी विधानसभा चुनाव में जदयू की टिकट पर मैदान में उतरना चाहते हैं, जबकि वर्तमान विधायक सुमित कुमार सिंह निर्दलीय रहते हुए सरकार का समर्थन कर मंत्री बने हैं। इसी वजह से राजनीतिक खींचतान बढ़ी है।
पुलिस ने स्थिति नियंत्रित कर कार्यक्रम को सामान्य बनाने का प्रयास किया, लेकिन यह घटना एनडीए की एकजुटता पर गंभीर सवाल खड़ा कर रही है। सम्मेलन में हुई मारपीट ने यह भी साबित कर दिया कि चुनावी माहौल में नेताओं की महत्वाकांक्षाएँ और समर्थकों की भावनाएँ किस तरह नियंत्रण से बाहर जा सकती हैं।
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