
पटना। बिहार के दबंग राजनेता आनंद मोहन की रिहाई की तैयारी है। वह दलित आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के जुर्म में उम्र कैद की सजा काट रहे हैं। राज्य सरकार के जेल नियमो में बदलाव की वजह 27 दोषी समय से पहले जेल से रिहा होने जा रहे हैं। उनमें से एक आनंद मोहन भी हैं। इस रिहाई की वजह से नीतीश सरकार भी विपक्षी दलों के निशाने पर है। बावजूद इसके सीएम नीतीश कुमार इस पूरे मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं। आप भी सोच रहे होंगे कि आनंद मोहन कौन है, जिसकी रिहाई पर बिहार की सियासत में बवाल मचा हुआ है। आइए जानते हैं उनके बारे में।
डीएम की हत्या के जुर्म में उम्र कैद
आनंद मोहन सिंह पर कई आरोप लगें पर ज्यादातर मामलों में वह बरी हो गए या उनसे जुड़ा मामला रफा—दफा हो गया। पर वर्ष 1994 के एक प्रकरण ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। राज्य के इतिहास में वर्ष 1994 की 5 दिसम्बर की तारीख कभी नहीं भुलाई जा सकती है। उसी दिन गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की भीड़ की पिटाई के बाद गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। डीएम की हत्या करने के लिए इस भीड़ को आनंद मोहन ने ही उकसाया था। इस मामले में आनंद मोहन, उनकी पत्नी लवली और चार अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया था। निचली अदालत ने वर्ष 2007 में आनंद मोहन को मौत की सजा सुनाई। देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि किसी नेता को मौत की सजा सुनाई गई। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस सजा को वर्ष 2008 में उम्र कैद में तब्दील कर दिया। उन्होंने अपनी सजा कम करने के लिए वर्ष 2012 में एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पर उन्हें राहत नहीं मिली। अब नीतीश सरकार द्वारा जेल नियमों में बदलाव के बाद यही आनंद मोहन रिहा होने जा रहे हैं।
17 साल की उम्र में शुरु हो गई राजनीतिक यात्रा
17 साल की उम्र में ही सियासी करियर शुरु करने वाले आनंद मोहन सहरसा जिले के पचगछिया गांव से आते हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम बहादुर सिंह के पोते आनंद मोहन का राजनीति से परिचय 1974 में ही हो गया था। जब उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान कॉलेज तक छोड़ दिया। इमरजेंसी के दौरान 2 साल जेल भी रहे। उनके राजनीतिक गुरु समाजवादी नेता परमेश्वर कुंवर थे। यह वह दौर था। जब बिहार में अगड़ी और पिछड़ी जातियों के बीच रस्साकशी चल रही थी। जातीय समीकरण आधारित राजनीति अपने चरम पर थी। उन्होंने निचली जातियों के उत्थान का मुकाबला करने के लिए वर्ष 1980 में समाजवादी क्रांति सेना बनाई। तभी से उनकी गिनती अपराधियों में होने लगी और उन पर इनाम घोषित होने लगे। उस दौरान उन्होंने लोकसभा चुनाव भी लड़ा पर सफलता नहीं मिली। आनंद मोहन को वर्ष 1983 में 3 महीने की जेल भी हुई थी।
1990 के बाद क्षत्रियों का दबदबा कम
वर्ष 1990 में वह जनता दल से माहिषी विधानसभा सीट से विधायक बने। उस समय के भी उनके दबंगई के किस्से बिहार में आम थे। उनकी राजेश रंजन उर्फ पप्पू गैंग के साथ लंबा बैर चला। वर्ष 1990 में यह स्थिति अपने चरम पर थी और उसके बाद क्षत्रियों का बिहार की राजनीति में दबदबा कम हो गया। वर्ष 1990 में मंडल कमीशन की सिफारिश के बाद जनता दल से उन्होंने अपनी राह अलग कर ली और वर्ष 1993 में बिहार पीपुल्स पार्टी (BPP) बनाई और बाद में समता पार्टी से हाथ मिलाया। उनकी पत्नी लवली आनंद वर्ष 1994 में वैशाली लोकसभा सीट से उपचुनाव भी जीतीं। वर्ष 1995 के चुनाव में उनकी पार्टी का प्रदर्शन बेहतर था।
आज भी बिहार की राजनीति में दबदबा
जेल में ही रहकर आनंद मोहन ने 1996 के लोकसभा चुनाव में शिवहर सीट से जीत हासिल की और 1998 में राष्ट्रीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर एक बार फिर सांसद बने। वर्ष 1999 में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। पर वह चुनाव नहीं जीत सके। पर इस दौरान भी उनके सियासी रसूख में कोई कमी नहीं आई। आज भी बिहार के राजनीतिक गलियारों में उनका दबदबा दिख रहा है।
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