
बिहार में विधानसभा चुनाव का शंखनाद होने वाला है। भागलपुर जिले की राजनीति में पीरपैंती विधानसभा क्षेत्र हमेशा से सुर्खियों में रहा है। यहां का चुनावी इतिहास बताता है कि जनता ने कभी भी किसी एक पार्टी को लंबे समय तक स्वीकार नहीं किया। हर दौर में मतदाता बारी–बारी से अलग-अलग दलों को मौका देते रहे हैं। यही वजह है कि पीरपैंती को “राजनीतिक हवाओं का दिशा सूचक” कहा जाता है।
1951 में पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सियाराम सिंह पीरपैंती के पहले विधायक बने। शुरुआती वर्षों में कांग्रेस का दबदबा रहा और 1962 तक तीन बार जीत दर्ज की। लेकिन 1967 से यहां सीपीआई के अंबिका प्रसाद का जलवा कायम हो गया। वे कुल छह बार विधायक बने, जो आज भी एक रिकॉर्ड है। 1980 में कांग्रेस के दलीप कुमार सिन्हा ने वापसी करायी और दो बार लगातार जीत दर्ज की। 1990 के दशक में फिर कम्युनिस्ट चेहरा अंबिका प्रसाद छाए रहे। सन् 2000 से पीरपैंती में राजद का दौर शुरू हुआ। शोभाकांत मंडल लगातार तीन बार विधायक बने और राजद ने यहां अपनी मजबूत पकड़ बनाई। 2010 में भाजपा के अमन कुमार ने बाजी पलटी और क्षेत्र में पहली बार भाजपा का परचम लहराया। 2015 में राजद ने वापसी की, लेकिन 2020 में भाजपा के ललन पासवान ने 27,000 से ज्यादा मतों से जीत दर्ज कर एनडीए को पुनः मजबूत किया।
पिछले तीन चुनाव का गणित और भी रोचक है। 2010 में जेडीयू-भाजपा गठबंधन रहा तो भाजपा प्रत्याशी जीते। 2015 में जेडीयू-राजद महागठबंधन बना तो राजद की जीत हुई। 2020 में जेडीयू-भाजपा एनडीए की ओर लौटे और भाजपा ने सीट अपने नाम की। यानी समीकरण साफ है जिसके साथ जेडीयू होगा, जीत उसी की झोली में जाएगी।
पीरपैंती का मतदान पैटर्न पूरी तरह जातीय समीकरणों पर टिका रहा है। मुस्लिम और यादव यहां निर्णायक भूमिका निभाते हैं। लेकिन राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण, कोयरी, कुर्मी, रविदास और पासवान वोट भी संतुलन बिगाड़ने की ताकत रखते हैं। यही वजह है कि यहां हर दल टिकट बंटवारे में खास रणनीति अपनाता है।
पीरपैंती में हालांकि सत्ता बदलती रही, लेकिन मुद्दे जस के तस हैं। लोगों कि एनटीपीसी से रोजगार की उम्मीद अधूरी है। चौखड़ी और बाबूपुर पुल का निर्माण वर्षों से लटका हुआ है। पीरपैती रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों का ठहराव अब भी अधूरा सपना है। फूड प्रोसेसिंग प्लांट लगाने की घोषणाएं कागज तक सीमित है। किसानों और मजदूरों के बीच बिचौलियों का बोलबाला है, जिससे स्थानीय लोग काफी परेशान हैं। मतदाताओं का रुझान बताता है कि 2025 में भी ये वही पुराने सवाल उनके जेहन में होंगे।
इस बार चुनावी रण में भाजपा और राजद आमने-सामने होंगे। खास बात यह कि प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज भी मैदान में सक्रिय है। अगर उनका प्रत्याशी सशक्त हुआ तो यह सीट इस बार त्रिकोणीय मुकाबले की गवाह बनेगी। भाजपा के ललन पासवान चुनावी मैदान में दोबारा उतरते हैं तो राजद उन्हें चुनौती देने की तैयारी करेगा। वहीं जनसुराज की एंट्री हालात बदल सकती है।
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