
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और उसके सहयोगी दलों ने ‘परिवारवाद’ के खिलाफ अपने पुराने नारे को खुद ही कमजोर कर दिया है। एनडीए के घटक दल BJP, जेडीयू, हम (HAM), लोजपा (रामविलास) और आरएलएम ने कुल मिलाकर 22 से अधिक पारिवारिक उम्मीदवारों को टिकट देकर विपक्ष को हमला बोलने का बड़ा मौका दे दिया है।
जहाँ बीजेपी खुद वर्षों से “वंशवाद पर वार” का नारा लगाती आई है, वहीं इस बार उसके सहयोगी दलों की टिकट सूची देखकर राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि अब एनडीए भी नहीं बचा रिश्तेदारी की राजनीति से।
एनडीए के सहयोगी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) इस मामले में सबसे आगे निकल गई है। जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली पार्टी ने जिन 6 उम्मीदवारों को टिकट दिया, उनमें से 5 सीधे रिश्तेदार या परिवार से जुड़े हुए हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जीतन राम मांझी ने “फैमिली पॉलिटिक्स” को न केवल स्वीकार किया है, बल्कि उसे एक रणनीति की तरह इस्तेमाल किया है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी JDU भी इस बार परिवारवाद से अछूती नहीं रही। पार्टी की 101 प्रत्याशियों की सूची में कम से कम 5 ऐसे नाम हैं जिनका सीधा राजनीतिक बैकग्राउंड परिवार से जुड़ा है।
नीतीश कुमार अक्सर “परिवारवाद पर प्रहार” की बात करते रहे हैं, लेकिन उनकी ही पार्टी की यह सूची उस बयान को कमजोर करती दिख रही है।
भले ही बीजेपी ने अपेक्षाकृत कम पारिवारिक उम्मीदवार उतारे हों, लेकिन सहयोगी दलों ने इसे पूरा कर दिया। राष्ट्रीय लोक मंच (RLM) के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पत्नी स्नेहलता कुशवाहा को सासाराम सीट से टिकट दिया है। कहा जा रहा है कि यह “पारिवारिक राजनीतिक विरासत” को आगे बढ़ाने की कवायद है।
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने भी पासवान परिवार के दो सदस्यों को टिकट दिया है। इनमें चिराग पासवान के चचेरे भाई और बहनोई शामिल हैं, जो पार्टी के “संगठन मजबूत करने” की रणनीति का हिस्सा बताए जा रहे हैं।
बीजेपी की ओर से भी कुछ सीटों पर स्थानीय नेताओं के बेटों या पत्नियों को मौका दिया गया है, हालांकि पार्टी ने इसे “योग्यता आधारित चयन” बताया है।
आरजेडी और कांग्रेस ने एनडीए के इस रुख पर तंज कसा है। तेजस्वी यादव ने कहा, “जो लोग हमें ‘परिवारवाद’ कहते थे, अब खुद अपने घर वालों को टिकट दे रहे हैं। लगता है बीजेपी और जेडीयू ने आरजेडी की कॉपी-पेस्ट पॉलिटिक्स शुरू कर दी है।”
वहीं कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि एनडीए अब “वंशवादी NDA” बन चुका है, जहाँ टिकट पाने के लिए जनता नहीं, रिश्तेदारी मायने रखती है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस बार स्थानीय पहचान और ग्राउंड नेटवर्क के कारण दलों ने परिवारों पर भरोसा जताया है। 2020 के बाद से बिहार में “चेहरा-आधारित वोटिंग” बढ़ी है, और दलों को ऐसे उम्मीदवार चाहिए जो पहले से जनता में जाने-पहचाने हों यानी “रिश्तेदारी नहीं, पहचान” की राजनीति भी इसकी वजह है।
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