बिहार चुनाव से पहले प्रशांत किशोर पर आफत! क्या अयोग्य घोषित हो सकते हैं जन सुराज के मुखिया?

Published : Oct 28, 2025, 11:26 AM IST
Prashant Kishore

सार

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का नाम दो राज्यों- बिहार और पश्चिम बंगाल की वोटर लिस्ट में दर्ज है। यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 का उल्लंघन है। उनकी टीम ने बंगाल का नाम हटाने के लिए आवेदन देने का दावा किया है।

पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण की वोटिंग से ठीक पहले चुनावी रणनीतिकार और 'जन सुराज' के मुखिया प्रशांत किशोर (PK) बड़ी कानूनी मुसीबत में घिरते दिख रहे हैं। चुनाव आयोग के रिकॉर्ड से यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि प्रशांत किशोर का नाम एक साथ दो राज्यों पश्चिम बंगाल और बिहार की वोटर लिस्ट में दर्ज है, जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act, 1950) का सीधा उल्लंघन है।

कहां-कहां दर्ज है पीके का नाम?

सामने आई रिपोर्टों के अनुसार, प्रशांत किशोर के दो स्थानों पर वोटर के रूप में पंजीकृत होने की जानकारी मिली है।

  • पश्चिम बंगाल (कोलकाता): उनका नाम कोलकाता के 121, कालीघाट रोड पते पर दर्ज है। यह पता और इलाका बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि 121, कालीघाट रोड तृणमूल कांग्रेस (TMC) का मुख्य दफ्तर है। यह क्षेत्र पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विधानसभा क्षेत्र भवानीपुर में आता है। प्रशांत किशोर ने 2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव में TMC के लिए चुनावी रणनीतिकार के रूप में काम किया था। उनका मतदान केंद्र सेंट हेलेन स्कूल, बी. रानीशंकारी लेन बताया गया है।
  • बिहार: उनका दूसरा पंजीकरण बिहार के पते पर है, हालांकि यह जानकारी सार्वजनिक है कि वह अपनी 'जन सुराज' यात्रा के दौरान बिहार में सक्रिय हैं और इसे ही अपना कार्यक्षेत्र बता रहे हैं। उनका नाम रोहतास जिले में स्थित कोंअर गांव की वोटर लिस्ट में दर्ज है, जो उनका पैतृक गांव है।

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम का उल्लंघन

यह मामला इसलिए गंभीर हो गया है क्योंकि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 17 स्पष्ट रूप से कहती है कि किसी भी व्यक्ति का नाम एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में दर्ज नहीं हो सकता है। इसी तरह, धारा 18 यह भी सुनिश्चित करती है कि कोई भी व्यक्ति एक ही क्षेत्र में दो बार बतौर वोटर रजिस्टर्ड न हो। कानून के तहत, अगर कोई वोटर अपना निवास स्थान बदलता है, तो उसे पुराने स्थान से नाम हटाने के लिए फॉर्म 8 भरकर आवेदन करना होता है।

अगर यह साबित हो जाता है कि प्रशांत किशोर ने जानबूझकर दोनों राज्यों में अपना नाम दर्ज कराया है और पुराने नाम को हटाने के लिए नियमानुसार आवेदन नहीं किया, तो यह कानूनी कार्रवाई को जन्म दे सकता है। कानूनी जानकारों के मुताबिक, इस मामले में चुनाव आयोग उन्हें अयोग्य घोषित करने की कार्रवाई भी कर सकता है।

टीम PK की सफाई और सीपीएम का आरोप

इस विवाद पर खुद प्रशांत किशोर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि, उनकी टीम 'जन सुराज' के एक वरिष्ठ सदस्य ने सफाई देते हुए कहा है कि “बंगाल चुनाव के बाद प्रशांत किशोर ने बिहार में वोटर कार्ड बनवाया था और बंगाल वाला कार्ड रद्द कराने के लिए आवेदन भी दिया है। यह प्रक्रिया के अधीन है।” हालांकि, टीम यह स्पष्ट नहीं कर पाई कि बंगाल का नामांकन रद्द हुआ है या नहीं।

इस बीच, CPM (सीपीआईएम) ने दावा किया है कि उन्होंने यह मुद्दा पिछले साल ही चुनाव आयोग के समक्ष उठाया था। सीपीएम नेता बिस्वजीत सरकार ने कहा, "हमने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर बताया था कि प्रशांत किशोर यहां के निवासी नहीं हैं, इसलिए उनका नाम वोटर लिस्ट से हटाया जाए।"

EC की बड़ी मुहिम के बीच फंसा मामला

यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब चुनाव आयोग (EC) पूरे देश में वोटर लिस्ट के विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) अभियान के तहत डुप्लिकेट वोटरों की पहचान करने में जुटा है। अकेले बिहार में ही इस मुहिम के दौरान 68.66 लाख नाम हटाए गए हैं, जिनमें से 7 लाख वोटर ऐसे थे जो दो स्थानों पर दर्ज पाए गए। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि बिहार चुनाव के ठीक पहले छिड़े इस विवाद पर प्रशांत किशोर की कानूनी टीम क्या कदम उठाती है और चुनाव आयोग इस मामले में क्या फैसला लेता है।

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