बिहार चुनाव 2025: युवाओं की भीड़-जमीनी मुद्दे और सवर्ण वोटर, क्या PK बनेंगे NDA के लिए सिरदर्द?

Published : Sep 19, 2025, 09:29 AM IST
Prashant Kishor

सार

बिहार में प्रशांत किशोर बेरोजगारी जैसे मुद्दों से युवाओं के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं। वे जाति से परे बीजेपी के सवर्ण वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं। सर्वे उन्हें 8-10% वोट शेयर के साथ किंगमेकर की भूमिका में देख रहे हैं।

पटनाः बिहार की राजनीति में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा प्रशांत किशोर (PK) की हो रही है। उनकी सभाओं में जबरदस्त भीड़ जुट रही है और सोशल मीडिया पर भी उनका अट्रैक्शन बढ़ रहा है। खासकर युवाओं के बीच PK एक बड़े विकल्प की तरह उभरते दिख रहे हैं। बेरोजगारी, पलायन और भ्रष्टाचार जैसे जमीनी मुद्दों को उठाकर उन्होंने सीधे-सीधे एनडीए सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है।

जाति समीकरण से परे अपील

दिलचस्प पहलू यह है कि जिस बिहार की राजनीति में अब तक जाति समीकरण हावी रहा है, वहां PK ऐसे वोटरों को लुभाते नज़र आ रहे हैं जो परंपरागत रूप से NDA का कोर वोटर माने जाते रहे हैं। ओपिनियन पोल्स भी यही इशारा कर रहे हैं कि PK बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं। कुछ सर्वे उन्हें 8–10% वोट शेयर तक दिला रहे हैं, तो कुछ उन्हें किंगमेकर की भूमिका में देख रहे हैं।

सीधे बीजेपी नेताओं पर वार

PK ने अपने निशाने पर सीधे बीजेपी के बड़े नेताओं को लिया है। प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल के मेडिकल कॉलेज का मुद्दा उठाया, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय को कठघरे में खड़ा किया, डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी की डिग्री पर सवाल उठाए और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल से पेट्रोल पंप मालिकाना हक पर सवाल पूछा। ये हमले सीधे-सीधे उन मुद्दों से जुड़े हैं जिन पर आम जनता पहले से नाराज़ है।

सवर्ण और युवा वोटरों पर पकड़

PK खुद सवर्ण पृष्ठभूमि से आते हैं और यही वजह है कि सवर्ण वोटरों में भी उनकी अपील दिख रही है। बेरोजगारी और पलायन जैसे सवालों ने उन्हें युवा वोटरों का चहेता बना दिया है। सभाओं में बार-बार PK यही सवाल उठाते हैं कि आखिर क्यों बिहार के नौजवानों को रोजगार और सम्मान के लिए दिल्ली, गुजरात या मुंबई पलायन करना पड़ता है।

बीजेपी की चिंता और रणनीति

सार्वजनिक मंचों पर बीजेपी PK फैक्टर को हल्का बताती है, लेकिन अमित शाह से लेकर जेपी नड्डा तक की आंतरिक बैठकों में यह बड़ा मुद्दा बन चुका है। पार्टी का आकलन है कि फिलहाल PK का वोट शेयर 5–6% है, लेकिन चुनाव आते-आते यह घटकर 2–3% रह जाएगा। वजह है हर विधानसभा में 10 टिकट का वादा, लेकिन टिकट सिर्फ एक को मिलेगा और बाकी 9 नाराज़ होंगे।

PK की फंडिंग पर सवाल

बीजेपी PK पर करप्शन का आरोप लगाने के बजाय उनकी फंडिंग पर सवाल उठा रही है। पार्टी नेताओं का कहना है कि घाटे में चलने वाली कंपनियां आखिर करोड़ों का चंदा PK को क्यों दे रही हैं। बीजेपी चाहती है कि इस सवाल के ज़रिए PK की विश्वसनीयता पर चोट की जाए।

जंगलराज बनाम मोदी मित्र

बीजेपी का दावा है कि बिहार का युवा और सवर्ण वोटर PK के जरिए बीजेपी को हराकर लालू-तेजस्वी के “जंगलराज” की वापसी नहीं चाहेगा। इसी को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने हर विधानसभा में 10,000 मोदी मित्र बनाने की योजना बनाई है। ये डिजिटल सैनिक की तरह काम करेंगे, सोशल मीडिया पर सरकार की उपलब्धियां गिनाएंगे और फर्स्ट-टाइम वोटरों को जोड़ने की कोशिश करेंगे।

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