
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले बीजेपी के अंदर और उसके परंपरागत वोटरों के बीच सियासी हलचल बढ़ गई है। यह चर्चा तब तेज हुई जब पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह ने एक बयान जारी किया और पार्टी के कुछ नेताओं को कठघरे में खड़ा कर दिया। सिंह ने विशेष रूप से डिप्टी सीएम और बिहार बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल के कार्यों पर सवाल उठाए और कहा कि पार्टी को राजपूत समुदाय के मतदाताओं की नाराजगी को गंभीरता से लेना चाहिए।
पूर्व राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर द्वारा लगाए गए आरोपों ने बिहार बीजेपी में हलचल बढ़ा दी है। किशोर ने डिप्टी सीएम, प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, सांसद संजय जायसवाल और जेडीयू नेता अशोक चौधरी पर गंभीर आरोप लगाए थे। आरके सिंह ने इस बयान का हवाला देते हुए कहा कि पार्टी को इस मुद्दे पर तुरंत प्रतिक्रिया देनी चाहिए। इस बयान के बाद बिहार की सियासी सरगर्मी और तेज हो गई है और राजपूत वोटर वर्ग की नाराजगी के सवाल ने चुनावी राजनीति में नई बहस खड़ी कर दी है।
बीजेपी के वरिष्ठ सांसद राजीव प्रताप रूडी भी पार्टी में साइडलाइनड चल रहे हैं। हाल ही में उन्होंने दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के चुनाव में बीजेपी के पूर्व सांसद संजीव बालियान के खिलाफ जीत हासिल की थी, लेकिन इसके बाद पार्टी के कुछ नेताओं ने उन पर गंभीर आरोप लगाए।
सारण से सांसद रूडी ने हाल ही में कुंवर सिंह की पुण्यतिथि पर सार्वजनिक रूप से कहा था कि राजपूत समुदाय लंबे समय से दूसरों के लिए सफलता की सीढ़ी बने हुए हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि अब इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए और राजपूत समुदाय को अपनी ताकत दिखानी होगी।
बिहार विधानसभा में बीजेपी के पास 19 राजपूत विधायक हैं, जो कुल विधानसभा सीटों का लगभग 24 प्रतिशत हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 21 राजपूत उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें 16 जीत गए। इसके बाद दो विधायक वीआईपी से तोड़ लिए गए और एक उपचुनाव में जीत हासिल की।
उत्तर बिहार में बीजेपी ने 13 राजपूत उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें 11 विजयी हुए और दो हार गए। वहीं, दक्षिण बिहार में 8 राजपूत उम्मीदवार मैदान में उतरे थे, जिनमें से 5 जीत गए और 3 हार गए।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह और राजीव प्रताप रूडी के बयानों ने यह संकेत दिया है कि बिहार में बीजेपी के पारंपरिक राजपूत वोटर पार्टी से नाराज हो सकते हैं। चुनाव से पहले यह नाराजगी पार्टी के लिए चिंता का विषय बन सकती है। अगर पार्टी ने समय रहते इस वर्ग के मतदाताओं को संतुष्ट नहीं किया, तो इसका नकारात्मक असर चुनाव परिणाम पर पड़ सकता है। राजपूत वोटरों की नाराजगी को देखते हुए बीजेपी को चुनावी रणनीति में बदलाव करने की आवश्यकता है।
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