
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक दल (RJD) की करारी हार के बाद पार्टी के भीतर चल रहा 'भूचाल' अब विस्फोटक रूप ले चुका है। लालू प्रसाद यादव के पुराने साथी और पार्टी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने अपने फेसबुक वॉल पर एक लंबी और भावनात्मक पोस्ट साझा कर लालू और तेजस्वी यादव दोनों पर तीखा तंज कसा है। इस पोस्ट में शिवानंद तिवारी ने अपने राजनीतिक निष्कासन का कारण बताते हुए लालू परिवार की महत्त्वाकांक्षाओं पर सवाल उठाए हैं।
शिवानंद तिवारी ने अपनी पोस्ट की शुरुआत बिहार आंदोलन के दिनों की एक कहानी से की, जब वह और लालू यादव फुलवारी शरीफ़ जेल के एक ही कमरे में बंद थे। तिवारी ने लिखा कि लालू यादव उस आंदोलन का बड़ा चेहरा थे, लेकिन उनकी आकांक्षा बहुत छोटी थी। रात में लालू ने उनसे कहा था: “बाबा, मैं राम लखन सिंह यादव जैसा नेता बनना चाहता हूँ।”
तिवारी ने तंज कसा कि "लगता है कि कभी कभी-ऊपर वाला शायद सुन लेता है।" उन्होंने आगे जोड़ा कि आज लालू यादव की वह इच्छा पूरी हो गई है, जब "संपूर्ण परिवार ने ज़ोर लगाया," लेकिन उनकी पार्टी के मात्र पच्चीस विधायक ही जीते। तिवारी ने लालू यादव पर सीधे तंज कसते हुए कहा, "लालू यादव धृतराष्ट्र की तरह बेटे के लिए राज सिंहासन को गर्म कर रहे थे।"
शिवानंद तिवारी ने खुलासा किया कि उन्हें RJD के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से क्यों हटाया गया और कार्यकारिणी में जगह क्यों नहीं दी गई। उन्होंने कहा कि उनके मन में यह सवाल उठ सकता है, जबकि वह खुद पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे।
तिवारी ने बताया कि उन्होंने तेजस्वी यादव के 'विजन' का विरोध इसलिए किया, क्योंकि वह कह रहे थे कि “मतदाता सूची का सघन पुनर्निरीक्षण लोकतंत्र के विरूद्ध साज़िश है। इसके खिलाफ राहुल गांधी के साथ सड़क पर उतरो। संघर्ष करो। पुलिस की मार खाओ। जेल जाओ।” लेकिन तेजस्वी यादव संघर्ष करने के बजाय "सपनों की दुनिया में मुख्यमंत्री का शपथ ले रहा था।" तिवारी ने कहा कि वह तेजस्वी को झकझोर कर उनके सपनों में विघ्न डाल रहे थे, इसीलिए उन्हें हटा दिया गया।
शिवानंद तिवारी ने पोस्ट का अंत यह कहकर किया कि वह अब लालू परिवार की राजनीतिक जकड़न से मुक्त हो चुके हैं। उन्होंने कहा, "अब मैं मुक्त हो चुका हूँ। फुरसत पा चुका हूँ। अब कहानियाँ सुनाता रहूँगा।" आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी के इस खुले विद्रोह ने यह साबित कर दिया है कि चुनाव में मिली करारी हार के बाद राजद का आंतरिक संघर्ष अब पार्टी के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा बन गया है।
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