
Tejashwi Yadav Bihar Chunav Boycott: बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) के विरोध में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने अब चुनाव बहिष्कार की बात तक कह दी है। बुधवार (23 जुलाई) को तेजस्वी ने कहा कि अगर चुनाव ईमानदारी से नहीं हो रहे हैं, तो इनके आयोजन का क्या औचित्य है? उन्होंने कहा कि इसके बजाय भाजपा को सीधे सत्ता का विस्तार दे दिया जाना चाहिए। चुनाव बहिष्कार को लेकर तेजस्वी ने कहा कि चर्चा के बाद पता चलेगा कि जनता क्या चाहती है और दूसरी पार्टियां क्या चाहती हैं? नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि चुनाव में समझौता किया गया है। तेजस्वी यादव के इस बयान पर सियासी भूचाल आ गया है। अब सवाल यह है कि विपक्ष इतना बड़ा फैसला क्यों ले रहा है? अगर महागठबंधन चुनाव का बहिष्कार करता है, तो क्या चुनाव नहीं होंगे? क्या भारत के किसी राज्य में पहले ऐसा हुआ है?
मतदाता सत्यापन को लेकर चुनाव आयोग द्वारा दिए गए आंकड़ों ने तेजस्वी यादव समेत पूरे विपक्ष की नींद उड़ा दी है। दरअसल, बिहार में सघन मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) का अभियान अब खत्म होने वाला है। चुनाव आयोग के अनुसार, अब तक 98.01 प्रतिशत मतदाताओं के नाम SIR में शामिल हो चुके हैं। मतदाता सत्यापन के दौरान, चुनाव आयोग को राज्य में 20 लाख ऐसे मतदाता मिले जिनकी मृत्यु हो चुकी है, जबकि 28 लाख ऐसे मतदाताओं के नाम मिले जो स्थायी रूप से पलायन कर गए हैं। वहीं, 1 लाख मतदाताओं का कोई अता-पता नहीं चल रहा है। इस तरह, राज्य में लगभग 52 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाने वाले हैं। सीटों के हिसाब से देखें तो प्रत्येक सीट पर लगभग 21 हजार मतदाताओं के नाम हटाए जाएंगे।
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अब अगर 2020 के चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो विपक्ष की बेचैनी का कारण भी पता चल जाएगा। पिछले चुनाव में लगभग 153 सीटों पर जीत-हार का अंतर 20 हजार से कम था। जबकि 80 सीटें ऐसी थीं जिन पर जीत का अंतर 10 हजार से 20 हजार के बीच था। 41 सीटों पर जीत-हार का फैसला 5 हजार से 10 हजार वोटों के बीच हुआ। 32 सीटें ऐसी थीं जिन पर 5 हजार से कम के अंतर से जीत-हार हुई। अब मतदाता सत्यापन (Voter Verification) में हर सीट पर लगभग 21 हजार मतदाता फर्जी पाए गए हैं। इनके नाम हटाए जाने से कई पार्टियों का चुनावी गणित बिगड़ जाएगा। हालांकि, यह कैसे तय किया जा सकता है कि इससे सिर्फ विपक्ष को ही नुकसान होगा।
संविधान के अनुसार, चुनाव आयोग का काम सिर्फ निष्पक्ष चुनाव कराना है। चाहे कोई भी पार्टी इसमें भाग ले या न ले। अगर सत्ताधारी पार्टी के अलावा कोई और उम्मीदवार खड़ा नहीं होता है, तो सभी निर्विरोध जीत जाएंगे। देश में ऐसी घटनाएं पहले भी देखी जा चुकी हैं। 1989 में हुए मिजोरम विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) ने कांग्रेस सरकार के विरोध में चुनाव का बहिष्कार किया था। नतीजतन, कांग्रेस ने सभी 40 सीटें जीत लीं। इसके बाद चुनाव रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई, लेकिन कोर्ट ने इनकार कर दिया।
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