
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने साफ कर दिया कि प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी मतदाताओं के मन में जगह बनाने में नाकाम रही। राज्यभर की चर्चाओं, लंबी ‘बिहार बदलाव यात्रा’ और जोरदार प्रचार के बावजूद पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। बड़े-बड़े दावों और उम्मीदों के बीच जन सुराज का जीरो स्कोर कई सवाल खड़े करता है। आखिर PK का मॉडल बिहार में क्यों नहीं चला? इसके पीछे यहाँ 5 बड़ी वजहें साफ तौर पर दिखती हैं...
प्रशांत किशोर ने एक साल तक गांव-गांव घूमकर शिक्षा, बेरोजगारी, शराबबंदी और सिस्टम की खामियों पर खूब बातें कीं। उनका नैरेटिव तगड़ा था, पर जातीय राजनीति की धरातल पर यह टिका नहीं। बिहार के वोटर मुद्दों को सुनते ज़रूर हैं, पर वोट जाति + स्थानीय समीकरण + भरोसे पर देते हैं।PK इस ट्राइएंगल में फिट नहीं हो पाए। मतदाताओं को लगा, “अच्छा बोलते हैं, लेकिन क्या कर पाएंगे?” यही संदेह भारी पड़ गया।
इस चुनाव में महिला वोटरों ने इतिहास रच दिया। महिलाओं की वोटिंग 71.6%, यानी पुरुषों से लगभग 9% अधिक। NDA पहले से ही महिला समूहों, स्वयं सहायता योजनाओं और रोज़गार कार्यक्रमों पर बड़ा काम कर चुका था। तेजस्वी यादव ने भी ₹2000 प्रति माह देने का वादा किया था। ऐसे में PK का नैरेटिव महिला वोटरों के बीच असरदार नहीं बन सका, जबकि चुनाव का सबसे बड़ा ब्लॉक यहीं था। महिला वोटिंग पैटर्न सीधा NDA की तरफ झुक गया।
बिहार में कोई भी नया नेता तब तक गंभीर नहीं माना जाता जब तक वह सीधे मैदान में उतरकर चुनाव नहीं लड़ता। शुरू में कयास थे कि PK राघोपुर से तेजस्वी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। लेकिन उन्होंने यह घोषणा कर दी कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। इससे दो नुकसान हुए, पहली कार्यकर्ताओं का उत्साह ठंडा पड़ गया। दूसरा मतदाताओं को लगा कि PK खुद भरोसे में नहीं हैं.
जन सुराज ने कोई स्पष्ट मुख्य मंत्री चेहरा नहीं दिया। दूसरी तरफ PK लगातार बड़े-बड़े दावे करते रहे जैसे कि JDU 25 सीट से अधिक नहीं जीतेगी और बिहार में बदलाव की लहर है। पर जब मतगणना में JDU 80+ सीटें लाती दिखी, तो यह PK की साख पर सीधी चोट थी। लोगों ने सोचा, “दावे तो बड़े हैं, पर जमीन की समझ कम लगती है।” बिहार के मतदाता भरोसे पर वोट देते हैं, और PK यह भरोसा नहीं बना पाए।
NDA ने यह चुनाव बेहद आक्रामक नैरेटिव पर लड़ा। जैसे कि डबल इंजन सरकार, स्थिरता, विकास मॉडल और जंगल राज का डर। इस माहौल में जनता ने जो पहले से मजबूत था उसी को चुना, नई पार्टी पर रिस्क नहीं लिया। PK की पार्टी के लिए कोई मजबूत राजनीतिक “इकोसिस्टम” भी मौजूद नहीं था।
प्रशांत किशोर की टीम युवाओं तक पहुँची, गांव-गांव बहस छेड़ी, मुद्दों पर चर्चा शुरू कराई पर चर्चा वोट में नहीं बदल पाई। बिहार चुनाव में जमीनी नेटवर्क, जातीय समीकरण, विश्वसनीय चेहरा और मजबूत संगठन सबसे बड़ा फैक्टर होते हैं। PK इन चारों में अभी कमजोर दिखे।
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