मांडूक्य ऋषि ने जहां रचा मांडूक्योपनिषद, उसी द्वीप पर लगता है मध्य भारत का सबसे बड़ा मसीही मेला

ऐसी मान्यता है कि मुंगेली जिले के मदकु द्वीप पर ही मांडूक्य ऋषि ने मंडुकोपनिषद की रचना की थी। उसी द्वीप पर इस समय मध्य भारत का सबसे बड़ा मसीही मेला लगा है। इसे झोपड़ी पर्व भी कहा जाता है।

बिलासपुर। ऐसी मान्यता है कि मुंगेली जिले के मदकु द्वीप पर ही मांडूक्य ऋषि ने मंडुकोपनिषद की रचना की थी। उसी द्वीप पर इस समय मध्य भारत का सबसे बड़ा मसीही मेला लगा है। एक सप्ताह तक चलने वाले इस मेले में छत्तीसगढ समेत देश भर से मसीही समाज के लोग इकटठा होते हैं। इसे झोपड़ी पर्व भी कहा जाता है। इस समय द्वीप पर बाइबिल के संदेश सुने जा सकते हैं।

114 वर्षों से मनाया जाता है झोपड़ी पर्व

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शिवनाथ नदी की धारा के दो भागों में बंटने की वजह से द्वीप सा स्थल विकसित हुआ है। जिसे मदकु द्वीप कहा जाता है। प्राकृतिक सौंदर्य की निराली छटा की वजह से यह लोगों को भाता भी है। 114 वर्षों से इसी द्वीप पर झोपड़ी पर्व परम्परागत तरीके से मनाया जाता है। मेले में मसीही समाज के अनुयायी आते हैं।

1909 में हुई मेले की शुरुआत

स्थानीय लोगों के मुताबिक वर्ष 1909 से मेले की शुरुआत हुई। हर साल फरवरी के महीने में मेले का आयोजन दो भागों में किया जाता है। पहले भाग को रिट्रीट कहा जाता है। इसमें मेले के सफल आयोजन के लिए प्रार्थना की जाती है। दूसरे भाग में अलग-अलग आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं। धर्म गुरु मसीही समाज के लोगो को आध्यात्मिक संदेश भी देते हैं।

छत्तीसगढ क्रिश्चियन मेला भी

मेले में आए लोगों का कहना है कि 1903-04 से मिशनरी हर साल फरवरी के महीने में यहां पिकनिक मनाने आते थे। उनके साथ अन्य लोग और खानसामा भी आते थे। फिर​ मिशनरी के साथ आने वाले लोगों की संख्या बढने लगी। बाद में मिशनरी बंद हो गयी। उसके बाद आसपास के गांव के लोग मेले में शामिल होने के लिए आने लगे और धीरे-धीरे पूरा छत्तीसगढ मेले में आने लगा। वर्ष 1909 से यह मेले के रुप में चलने लगा। इसे छत्तीसगढ क्रिश्चियन मेला भी कहा जाता है। यह मेला सोमवार की शाम से शुरु होता है और रविवार की दोपहर तक चलता है। मसीही समाज के लोग शांति, एकता और भाईचारे के लिए प्रार्थना करते हैं।

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