छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के रेवती नारायण मिश्रा कॉलेज के सहायक प्रोफेसर बुधलाल ने एक मिसाल कायम की है। वह जन्म से ही नेत्रहीन हैं। बचपन में ही उनके पिता की मौत हो गई थी। आसपास के लोग उनसे गाना सीखने को कहते थे ताकि वह भीख मांगकर अपना गुजारा कर सकें।
सूरजपुर। छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के रेवती नारायण मिश्रा कॉलेज के सहायक प्रोफेसर बुधलाल ने एक मिसाल कायम की है। वह जन्म से ही नेत्रहीन हैं। बचपन में ही उनके पिता की मौत हो गई थी। आसपास के लोग उनसे गाना सीखने को कहते थे ताकि वह भीख मांगकर अपना गुजारा कर सकें। पर, उनका संकल्प इतना दृढ़ था कि उन्होंने जन्म से मिली प्रकृति की चुनौती को स्वीकारा और खुद को हुनरमंद बनाने में जुट गए। उनकी लाइफ में एक ऐसा मोड़ भी आया, जिसने उनकी जिंदगी बदल दी। उनको अपने जीवन का लक्ष्य मिल गया और वह निरंतर उसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए आगे बढ़ते गए।
दो रुपये की कमी ने कराया एहसास, बनाया लक्ष्य
एक समय ऐसा था कि जब उनके पास समोसा खाने के लिए दो रुपये नहीं थे। उसी समय उन्होंने अपना लक्ष्य बनाया। उनका कहना है कि वर्ष 2007 में वह 10वीं कक्षा के स्टूडेंट थे। उस समय उनके पास दो रुपये नहीं थे कि वह उन पैसों से समोसा खरीद कर खा सकें। दो रुपये की कमी ने उन्हें एहसास कराया कि उन्हें नौकरी करनी पड़ेगी और उसके लिए पढ़ाई। एक झटके में उन्हें अपना लक्ष्य तय किया और उसे हासिल करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी। उन्होंने परिस्थतियों के सामने घुटने नहीं टेकें, बल्कि अपनी शारीरिक कमजोरी को ही अपनी ताकत बनाया और पढ़ाई में लग गए। वर्तमान में वह कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।
गाना सीखने और भीख मांगने की मिलती थी सलाह
उनके पिता का साया बचपन में ही उनके सिर से उठ गया था। मॉं भी गरीब थी, ऐसे में आप कल्पना कर सकते हैं कि जन्म से नेत्रहीन एक बच्चे की जिंदगी कितनी कठिन रही होगी। उनका कहना है कि जब वह छोटे थे, तब लोग पढ़ाई करने के बजाए भीख मांगने की सलाह देते थे तो अच्छी सलाह देने वाले भी थे। उन्होंने जीवन में आई सभी दिक्कतों का डटकर सामना किया। उन्हें लोगों से तरह तरह की बातें सुननी पड़ती थी। लोग गाना सीखने की बात कहते थे, यह भी कहते थे कि इससे ट्रेन में भीख मांगकर गुजारा हो जाएगा। अब वही बुधलाल दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं। वह सामान्य जीवन जी रहे हैं। उनकी पत्नी और बच्चे भी हैं।