हरियाणा चुनाव: जाट बनाम ओबीसी, किसके सिर सजेगा जीत का सेहरा?

हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होने की उम्मीद है। बीजेपी और कांग्रेस ओबीसी और जाट वोट बैंक पर निर्भर हैं, जबकि AAP ने पांच गारंटी के साथ चुनावी मैदान में कदम रखा है।

Haryana Assembly Election: हरियाणा विधानसभा चुनाव का आगाज हो चुका है। शह-मात के इस खेल में राष्ट्रीय पार्टियों से लेकर छोटे दल सभी अपनी-अपनी रणनीतियों के साथ फतह के लिए उतर चुके हैं। इंडिया गठबंधन का हिस्सा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी यहां भी आमने-सामने मैदान में होंगे तो यहां की क्षेत्रीय पार्टियों ने छोटे दलों को साथ लेकर चुनाव मैदान में ताल ठोका है। बीजेपी भी छोटे दलों को साधने में लगी है।

किसका किससे हुआ गठबंधन?

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हरियाणा में 1 अक्टूबर को वोट पड़ेंगे। इस बार किसी भी दल या गठबंधन के बीच आमने-सामने का मुकाबला होता नहीं दिख रहा। यह इसलिए क्योंकि कई गठबंधन मैदान में है। बीजेपी और पूर्व उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (JJP) की राहें इस चुनाव में अलग-अलग हो चुकी हैं। जेजेपी से अलग होकर बीजेपी छोटे दलों को साधने में जुटी है। भाजपा गोपाल कांडा की हरियाणा लोकहित पार्टी और विनोद शर्मा की हरियाणा जन चेतना पार्टी के साथ गठबंधन कर सकती है। कांडा पांच सीटें मांग रहे हैं जबकि शर्मा अंबाला शहर और कालका विधानसभा सीटों का दावा कर रहे हैं।

उधर, जेजेपी ने सांसद चंद्रशेखर आजाद रावण की पार्टी आजाद समाज पार्टी-कांशीराम (ASP-KR) के साथ अलायंस कर चुनाव में ताल ठोक दिया है। हालांकि, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) अलग-अलग ही चुनाव लड़ेंगी। इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) ने बहुजन समाज पार्टी (BSP) के साथ गठबंधन किया है।

कांग्रेस-बीजेपी की ओबीसी और जाट वोट्स पर निर्भरता

भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस का मूल वोट यहां ओबीसी और जाट वोट बैंक है। जाट वोटर्स की नाराजगी के दौरान बीजेपी ने राज्य में नान-जाट वोटर्स पर फोकस किया था। इस बार भी बीजेपी ओबीसी और एससी-एसटी को अपने पाले में करने की फिराक में है। उधर, कांग्रेस भी जातीय जनगणना का मुद्दा छेड़कर पिछड़ा और अनुसूचित को लुभा रही है। राज्य की आबादी का लगभग 20% हिस्सा अनुसूचित जातियों (SC) का है। यह वोट यहां निर्णायक हो सकता है।

बीजेपी को एंटी-इंकम्बेंसी फैक्टर को साधना भी जरूरी

हरियाणा में पिछले 10 साल से बीजेपी की सरकार है। बीजेपी को तीसरी बार सत्ता में आने के लिए एंटी-इंकम्बेंसी को साधना होगा। विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे भी प्रभावी होते हैं। दस साल से सत्ता में होने की वजह से वह विपक्ष के निशाने पर रहेगी। वर्तमान विधायकों को टिकट देना या काटना भी कांटों भरा फैसला है। बीजेपी सूत्रों की मानें तो बीजेपी अपने आधा से अधिक मौजूदा विधायकों को बदलने जा रही है। इसके अलावा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों के परिजन, सीनियर नेताओं के बेटे-बेटियों को चुनाव मैदान में उतारने जा रही है। यहां वह खिलाड़ियों पर भी दांव लगाने की सोच रही।

AAP पांच गारंटी के साथ तो कांग्रेस को दिग्गजों पर भरोसा

उधर, बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए आम आदमी पार्टी ने अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया है। आप ने पांच गारंटी के साथ चुनावी ताल ठोकी है। केजरीवाल की '5 गारंटी' जैसे मुफ्त बिजली, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और 18 साल से ऊपर की हर महिला को ₹1000 प्रति माह देने पर जोर दे रही।

कांग्रेस को अपने दिग्गज नेताओं पर भरोसा है। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा सहित कई नेता चुनाव में जोरशोर से लगे हुए हैं। राहुल गांधी का जातीय जनगणना का मुद्दा भी लोगों को आकर्षित कर रहा।

बीजेपी का दस साल में वोट शेयर घटा

अब अगर आंकड़ों पर गौर करें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी 10 सीटों पर परचम लहराया था। लेकिन विधानसभा चुनाव में 90 में 40 सीटें ही जीत सकी थीं। बहुमत नहीं मिलने से उसे गठजोड़ करना पड़ा था। बीजेपी को 36.5 प्रतिशत ही वोट मिले थे। इस बार लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी ने 46.1% वोट शेयर हासिल किए लेकिन उसकी सीटें आधी रह गईं। वह 10 लोकसभा सीटों में पांच सीटों पर जीत सकी। जबकि कांग्रेस को पांच सीटें मिली। उसे 43.7% वोट शेयर भी मिला। 2019 के 58% वोट शेयर की तुलना में भाजपा का वोट शेयर 12% घट गया जबकि कांग्रेस का 15.3% वोट बढ़ा।

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