121 साल की उम्र में मरते दम तक कभी हॉस्पिटल नहीं गईं, सेकंड वर्ल्ड वॉर अपनी आंखों से देखा,19 पोते, 63 परपोते और 15 परपोते

Published : Mar 17, 2023, 02:32 PM IST

नागालैंड की 121 वर्षीय पुपिरी पफुखा(Pupirei Pfukha) नहीं रहीं। इनका आशीर्वाद लेने बड़ी संख्या में पर्यटक राजधानी कोहिमा के पास किगवेमा जाते थे, बुधवार(15 मार्च) की रात निधन हो गया। पफुखा ने पिछले महीने नागालैंड विधानसभा चुनाव में डाक से वोट डाला था।

PREV
15

कोहिमा(KOHIMA). नागालैंड की 121 वर्षीय पुपिरी पफुखा(Pupirei Pfukha) नहीं रहीं। इनका आशीर्वाद लेने बड़ी संख्या में पर्यटक राजधानी कोहिमा के पास किगवेमा जाते थे, बुधवार(15 मार्च) की रात निधन हो गया। पफुखा ने पिछले महीने नागालैंड विधानसभा चुनाव में डाक से वोट डाला था। उनके वोटर कार्ड के अनुसार, चुनाव अधिकारियों ने वेरिफाइड किया  था कि वे 121 वर्ष की थीं। कई निवासियों ने सुझाव दिया कि एक DNA टेस्ट से उनकी सही उम्र का पता चल सकता है। यानी लोग उन्हें इससे अधिक उम्र का मानते थे। 

25

पुपिरी पफुआ की मृत्यु ने उनकी परपोती अरहेनो को झकझोर कर रख दिया, क्योंकि उन्हें गांव की नानी माना जाता था। यहां उनके समुदाय के करीब 6,000 निवासी हैं। इन्होंने पुपुरी को कभी अस्पताल जाते नहीं देखा। परपोती अरहेनो ने कहा कि पुपिरी को कोई बड़ी बीमारी नहीं थी। जब वह गुजरी तो हर कोई हैरान रह गया। इनके पति इसी गांव से थे और 1969 में उनका निधन हुआ। इनके 19 पोते, 63 परपोते और 15 परपोते हैं।

35

अरहेनो ने बताया कि पफुखा सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान मौजूद थीं, जब जापानी आक्रमणकारियों ने किग्वेमा गांव को एक कैम्प में बदल दिया था। तब उन्होंने बच्चों की सबसे अच्छी देखभाल की और परिवार को किसी भी संभावित संघर्ष से बचाने के लिए अस्थायी रूप से दूसरे टोले में चली गईं।

यह भी पढ़ें-Shocking Murder: इतनी बदतमीज और हिंसक थी बेटी कि पति ने हाथ जोड़ लिए, मायके में भी गदर मचा रखी थी, इस बार पिता सनक गया

45

इंफोसिस में जॉब कर रहे उनके पड़ोसी नीसाटो नेहू ने कहा कि पुपिरी को समुदाय में एक शिक्षा का माहौल देने का श्रेय दिया जाता है, क्योंकि उनका सबसे बड़ा बेटा किग्वेमा में दाखिला लेने और ग्रेजुएशन करने वाला पहला व्यक्ति था। 100 साल पार करने के बाद भी उन्हें अपने शुरुआती दिनों और भयानक स्पैनिश फ़्लू महामारी में गांवों में मचे हाहाकार के बारे में अच्छे से याद था। इस महामारी ने1918 में तत्कालीन असम और वर्तमान नागालैंड के कुछ हिस्सों को तबाह कर दिया था।

यह भी पढ़ें-सलमान की 'FAN FOLLOWING' पर कैसे भारी पड़ गया ये रियल विलेन, मोबाइल में फोटो रखने लगी हैं स्कूल गर्ल्स

55

नीसाटो ने बताया-"100 साल की होने के बाद से पुपिरी अब ठीक से देख नहीं पाती थीं, लेकिन वह अभी भी परिवार और पड़ोसियों को उनकी आवाज से पहचान सकती थीं।  हालांकि इसके पांच साल बाद उन्होंने अपने सुनने की क्षमता खो दी, लेकिन फिर भी हमारे हाथों को छूकर हमें पहचान सकती थीं।"

Recommended Stories