भारत में गैंडों का एक बड़ा 'हत्यारा' पकड़ा गया, असम और बांग्लादेश में 125 से अधिक शिकार कर चुका था ये शॉर्पशूटर

देश में गैंडों(rhinos) को शिकारियों से बचाने एक सरकारें कड़े एक्शन में दिखाई दे रही हैं। पश्चिम बंगाल पुलिस और राज्य के वन विभाग ने गैंडों की तस्करी के मामले में असम में छिपे एक शार्पशूटर को गिरफ्तार किया है।

कोलकाता. देश में गैंडों(rhinos) को शिकारियों से बचाने एक सरकारें कड़े एक्शन में दिखाई दे रही हैं। पश्चिम बंगाल पुलिस और राज्य के वन विभाग ने गैंडों की तस्करी के मामले में असम में छिपे एक शार्पशूटर को गिरफ्तार किया है। लेकन बासुमतारी(Leken Basumatar) के रूप में पहचाने जाने वाले इस आरोपी ने कथित तौर पर पश्चिम बंगाल के जलदापारा और गोरुमारा जंगलों और असम के काजीरंगा जंगल में 125 से अधिक गैंडों को मार डाला। पढ़िए पूरी डिटेल्स...

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पश्चिम बंगाल पुलिस और वन विभाग द्वारा चलाए गए ज्वाइंट ऑपरेशन में आरोपी को गिरफ्तार किया गया। उसे बुधवार(15 फरवरी) को पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार में न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। वन विभाग ने कहा कि लेकन बसुमतारी और उसकी टीम 2010 के बाद से राष्ट्रीय उद्यानों में गैंडों को मारने के लगभग सभी मामलों में शामिल थी।

इसी मामले के सिलसिले में लेकन बासुमतारी के एक करीबी सहयोगी को तीन रायफल और जिंदा कारतूस के साथ गिरफ्तार किया गया था। तब पूछताछ में पता चला कि लेकन ने गैंडों के सींग का एक हिस्सा काट दिया और भाग गया।

पिछले दिनों उत्तरी लखीमपुर(North Lakhimpur).असम के लखीमपुर से अतिक्रमण हटने का अच्छा रिजल्ट सामने आया है। यहां बड़ी संख्या में लोगों ने रिजर्व फॉरेस्ट पर कब्जा कर रखा था। लखीमपुर जिले में पावा संरक्षित वन(Pava Reserve Forest) के लगभग 90 प्रतिशत क्षेत्र से अतिक्रमण हटाये जाने के कुछ दिनों बाद ही खाली किए गए स्थल पर एक सींग वाला गैंडा( one-horned rhino) देखा गया। इस खबर से वन्यजीव रक्षकों(wildlife protectors) में खुशी की लहर है। 1941 में मूल 46 वर्ग किमी पावा रिजर्व फॉरेस्ट में से केवल 0.32 वर्ग किमी खाली था और बाकी सभी पर कब्जा (अतिक्रमण) हो गया था। पिछले तीन दशकों में कुल मिलाकर 701 परिवारों ने पावा रिजर्व फॉरेस्ट लैंड पर कब्जा कर लिया था। क्लिक करके पढ़ें

भारतीय गैंडा एक सींग वाला जानवर है। यह विश्व का चौथा सबसे बड़ा जलचर जीव(water creature) है। हालांकि इस समय यह जीव अपने आवासीय क्षेत्र के घट जाने से संकट में है। यह पूर्वोत्तर भारत के असम और नेपाल की तराई के कुछ संरक्षित इलाकों में पाया जाता है, जहां इसकी संख्या हिमालय की तलहटी में नदियों वाले वन्यक्षेत्रों तक सीमित है।

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