झारखंड के इस मंदिर में 16 दिन की नवरात्रि, 500 साल पुरानी पोथी से होती है पूजा

झारखंड के लातेहार स्थित मां उग्रतारा मंदिर में 16 दिन तक नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। यहां हर साल 500 साल पुरानी कैथी लिपि में लिखी पोथी से दुर्गा पूजा होती है। जानें मंदिर का इतिहास, अनूठी पूजा पद्धतियां और इसके धार्मिक महत्व के बारे में।

Surya Prakash Tripathi | Published : Oct 9, 2024 11:46 AM IST

लातेहार। झारखंड के लातेहार जिले के चंदवा प्रखंड में स्थित मां उग्रतारा मंदिर अपने अनोखे और ऐतिहासिक पूजा विधि के लिए प्रसिद्ध है। हर साल जीतिया पर्व के अवसर पर इस मंदिर में 16 दिवसीय दुर्गा पूजा का आयोजन होता है, जिसमें कलश स्थापना के साथ पूजा शुरू होती है। इस मंदिर की दुर्गा पूजा की सबसे अनूठी विशेषता यह है कि यहां 500 साल पुरानी एक खास पोथी से पूजा की जाती है।

200 पन्नों की पोथी को सिर्फ दुर्गापूजा के समय जाता है खोला

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यह पोथी 200 पन्नों की है और कैथी लिपि में लिखी हुई है। इसे सिर्फ दुर्गा पूजा के समय ही खोला जाता है और पूजा अनुष्ठान इसी पोथी के अनुसार संपन्न होते हैं। पूजा समाप्त होने के बाद इस पोथी को कपड़े में लपेटकर पूरी श्रद्धा के साथ सुरक्षित रख दिया जाता है।

विजयदशमी पर मां को चढ़ाया जाता है इस विधा से पान

विजयादशमी के दिन हवन के पश्चात एक विशेष रीत के तहत माता की प्रतिमा पर पान चढ़ाया जाता है। जब तक पान नीचे नहीं गिरता, पूजा जारी रहती है। पान के गिरते ही यह माना जाता है कि देवी ने विसर्जन की अनुमति दे दी है। मां उग्रतारा मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में टोरी स्टेट के राजा पीतांबर नाथ शाही ने करवाया था, और यहां माता उग्रतारा को महाराजा की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है। झारखंड ही नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, दिल्ली समेत अन्य राज्यों से भी लाखों श्रद्धालु यहां पूजा के लिए आते हैं।

तितिया पहाड़ पर मिली थीं प्राचीन मूर्तियां

मंदिर से कुछ किलोमीटर दूर स्थित तितिया पहाड़ पर एक चतुर्भुजी देवी की प्राचीन मूर्ति मिली थी, जिस पर एक अज्ञात लिपि अंकित है। यह लिपि आज भी रहस्य बनी हुई है और इस पर शोध जारी है। कहा जाता है कि राजा पीतांबर नाथ शाही को लातेहार के मनकेरी गांव के पास उग्रतारा और लक्ष्मी की मूर्तियां मिली थीं, जिसके बाद उन्होंने इस मंदिर का निर्माण कराया।

देवी के अष्ट तारा स्वरूपों में उग्रतारा का है विशेष महत्व

मंदिर के पुनर्निर्माण में रानी अहिल्याबाई का भी योगदान था, जिन्होंने सभी जातियों को समान पूजा का अधिकार दिलवाने के लिए मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। मां उग्रतारा देवी को देवी तारा के स्वरूप में पूजा जाता है, जो भगवान शिव की पीड़ा निवारण के लिए प्रकट हुई थीं। देवी के अष्ट तारा स्वरूपों में उग्रतारा का विशेष महत्व है, जिनके शक्तिपीठ तारापीठ (पश्चिम बंगाल), सासाराम (बिहार), और सुघंधा (बांग्लादेश) में स्थित हैं।

यहां है नाथ संप्रदाय का विशेष स्थान

मां उग्रतारा मंदिर की परंपराओं में नाथ संप्रदाय का विशेष स्थान है और यहां पूजा विधि में किसी विशेष संप्रदाय की बाध्यता नहीं है। यह मंदिर भारतीय संस्कृति की अनूठी परंपराओं और मान्यताओं का जीवंत उदाहरण है। इसके साथ ही मंदिर के पास स्थित चुटुबाग पर्वत पर मां भ्रामरी देवी की गुफाएं भी दर्शनीय हैं, जो अपनी प्राकृतिक और धार्मिक विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध हैं।

 

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